Book Title: Charitrya Suvas Author(s): Babulal Siddhsen Jain Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra KobaPage 17
________________ चारित्र्य - सुदास अर्थात् पिसपिर नामक एकान्त पहाड़ी पर जानेका अपना विचार उन्होंने प्रगट किया। सन्त दूर चले जायेंगे तो हमें समागमका लाभ नहीं मिलेगा ऐसे विचारसे भक्तजनोंमें निराशा व्याप्त हो गयी । सभीने मिलकर सन्तसे वहीं रुकनेकी प्रार्थना की। सन्तने कहा : 'बन्धुओ ! तुम्हारा प्रेम मैं अच्छी तरह समझ सकता हूँ, परन्तु हमारी सन्तोंकी दुनिया अलग ही है । जैसे मछलीको पानीसे बाहर निकालो तो वह तड़फड़ाकर फिरसे पानीमें ही जानेकी इच्छा करती है, वैसे हम भी कभी किसी समय विशेष कारणसे लोकप्रसंगमें आयें तो भी फिरसे एकान्त पहाड़ जंगलादिकी ओर वापस जानेको हमारा मन छटपटाता है, कारण कि ऐसे एकान्त - नीरव स्थानमें मौन सहित हम अपने प्रभुके साथ लय लगाते हैं और वह परमात्मप्रेम ही हमारे जीवनको अमर बनाने वाला रसायन है ।' और दूसरे दिन सन्तने स्वस्थान प्रति विहार किया । खुदाका फ़रिश्ता विक्रम संवत् १९४५ के समयकी यह बात है। एक बार एक अरबिस्तानीने मुंबईके एक प्रतिष्ठित जौहरीके साथ हीरोंका सौदा किया। सौदा करते समय ऐसा निश्चित हुआ कि अमुक समय पर, निश्चित किये गये भावसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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