Book Title: Charitrya Suvas
Author(s): Babulal Siddhsen Jain
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ चारित्र्य-सुवास न? मेरे लिए इससे विशेष कुछ नहीं।' ऐसा निर्भय और अडिग विश्वासपूर्ण उत्तर सुनकर कलेक्टर खूब प्रभावित हुए और लालाजीकी पीठ थपेड़कर उन्हें धन्यवाद दिया। देखो ! भारतके महावीर, बुद्ध और गांधीके अहिंसाके सिद्धान्तको पालनेवालोंकी वीरता और दृढ़ता ! हम भी इससे प्रेरणा लेकर अहिंसक बनें। प्रामाणिकताका प्रताप - विक्रम संवत् १७४० में गुजरात-सौराष्ट्रमें भयंकर दुष्काल हुआ। जिससे अनेक पशु और मनुष्य भी भूखे मरने लगे। चौमासा प्रारम्भ हो गया था और दिन-पर-दिन बीते जा रहे थे, फिर भी वर्षा नहीं हुई। उस समयके गुजरात-नरेशने अनेक यज्ञ किये और साधु-सन्तोंसे प्रार्थना भी की, परन्तु वर्षा हुई ही नहीं। प्रजाके किन्हीं व्यक्तियोंने कहा कि अपने राज्यमें अमुक व्यापारी है वह चाहे तो वर्षा हो सकती है। राजा तुरंत उस व्यापारीके पास गये और बातचीत की। व्यापारीने कहा, “महाराज ! मैं तो आपका एक सामान्य प्रजा-जन हूँ, मुझसे क्या हो सकता है ?" फिर भी राजा नहीं माने, वे तो हठ करके बैठ गये कि तुम्हें इन अनेक मूक पशुओं और भूखे प्रजाजनों पर दया करनी ही पड़ेगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106