Book Title: Charitrya Suvas
Author(s): Babulal Siddhsen Jain
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 22
________________ चारित्र्य-सुवास ____'नामु ! तू मूर्ख है। अपने पैरों पर कोई कुल्हाड़ी मारता होगा ? ऐसा करते हुए कभी अधिक लग जाय और पके अथवा सड़न हो जाय तो पैर कटवानेका समय आवे' नामु : माँ, अपनेको जैसे कुहाड़ी लगनेसे दुःख होता है वैसे वृक्षको भी होता होगा। तूने मुझे नीमकी छाल लानेको कहा था तब मैंने उसकी छाल उखाड़नेके बाद अपने पैर पर भी प्रयोग किया था। माँ : नामु, मुझे लगता है, तू भविष्यमें कोई बड़ा सन्त महात्मा बनेगा, कारण कि छोटेसे छोटे पौधे, वृक्ष या जीवजन्तुको भी अपने समान ही दुःखका अनुभव होता होगा ऐसी करुणाभरी भावुकता तेरे हृदयमें सहजरूपसे उत्पन्न होती है। छोटे बालकको ऐसा विचार कहाँसे आवे ? - और, माताका अनुमान सचमुच सत्य निकला। भविष्यमें यह बालक अपने समयका एक महान भक्त-सन्त हुआ, जिन्हें हम आज भक्तशिरोमणि नामदेवके नामसे जानते हैं। सचा त्यागी और दानवीर - काशीराज और कोशलराज इन दोनोंकी यह कथा है। दोनों राजाओंके राज्य पास-पासमें आये हुए थे। काशी सुदृढ़ राज्य था, परन्तु कीर्ति कोशलराजकी अधिक थी। कोशलराज दानके लिए प्रसिद्ध थे। उनके यहाँ दान लेनेकी इच्छासे आया हुआ कोई भी व्यक्ति खाली हाथ वापस नहीं जाता था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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