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चारित्र्य-सुवास महाशयने कहा, 'मेरे अधिकारके पैसे तो इतने ही होते हैं, तुम्हें देना ही है तो किसी अन्य प्रसंग पर दानके लिए दे सकती हो कि जिसका उपयोग गरीव रोगियोंके लिए होगा। इस समय तो किसी भी अवस्थामें मैं अधिक नहीं ले पाऊँगा।'
कुटुम्बीजन और पिताजी नाराज़ हुए फिर भी नाग महाशयने अपना न्यायका आग्रह नहीं छोड़ा।
देखो, बड़े पुरुषोंका संतोष और न्यायपूर्ण जीवन-व्यवहार !!
दरिद्रनारायणके प्रति प्रेम
यूरोपके सन्त-साहित्यके इतिहासमें इटलीके प्रसिद्ध सन्त . फ्रांसिसका नाम खूब प्रसिद्ध है, उन्होंने विरक्त जीवन अंगीकार किया उसके पूर्वके समयकी यह घटना है। युवावस्थामें उन्हें अनेक कलाकारों और संगीतज्ञोंका अच्छा परिचय था। खूब धनवान होनेके कारण ऐसे कलाकारों तथा गरीबों और भिक्षुकोंका उनके यहाँ सदा आना-जाना रहता था और वे भी उदार हृदयसे सबको संतुष्ट करते थे।
एक दिन वे अपनी रेशमी कपड़ेकी दुकानमें बैठे थे। बड़ा ग्राहक था, उसके साथ स्पष्टीकरण और लेन-देनमें एक भिखारी थोड़ी देर खड़े रहकर चलता बना । उस पर उनकी दृष्टि पड़ी परन्तु वह ग्राहक उठा तबतक तो भिखारी दूर निकल गया था।
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