Book Title: Charitrya Suvas
Author(s): Babulal Siddhsen Jain
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 25
________________ १ . चारित्र्य-सुवास सम्बंधीने कहा, 'कौन मूर्ख अतिथिका सत्कार न करे ? तथागत पूछते हैं, "भाई ! तेरी दी हुई वस्तुओंका अतिथि स्वीकार न करे तो वे वस्तुएँ कहाँ जायें ? - सम्बन्धीने कहा, 'मेरी दी हुई वस्तुओंका वे उपयोग न करें तो मुझे ही वापस मिलें - मेरे पास ही रहें।' तथागत बोले, भाई ! तेरी इन गालियों और अपशब्दोंका मैंने स्वीकार नहीं किया तो तेरी गालियोंका अब क्या होगा? वे अपशब्द अब कहाँ जायेंगे ?' वह मनुष्य बहुत शरमा गया और अपने दुष्कृत्यके लिए तथागतसे क्षमा माँगी। गालियाँ, अपमान, कष्ट आदि 'खा जानेसे' आत्मबल बढ़ता है। इसीलिए सन्तोंने साधकके लिए 'गम' खानेकी आज्ञा की है और स्वयं 'गम खाकर' उपरोक्त प्रकारके अनेक दृष्टान्त साधकोंको प्रेरणा देनेके लिए स्वयंके जीवन में सिद्ध कर दिखाये हैं। १० सच्चे भक्तका जीवन मध्यकालीन सन्त-भक्तोमें कुम्भनदासका नाम प्रसिद्ध है। वे वृन्दावनके पास जमुनावतो नामक गाँवमें खेती करके अपना गुजारा करते और निरन्तर प्रभुभक्तिमें लीन रहते। एक समय सम्राट अकबरके प्रमुख सेनापति महाराजा मानसिंह वहाँ आये। प्रभुके कीर्तनमें अत्यन्त निमग्न देखकर मानसिंहके मनमें कुम्भनदासके प्रति बहुमान उत्पन्न हुआ। दूसरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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