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& वाले और बलवान होते हैं, वे अपने से छोटे जीवों को निर्दयता पूर्वक मार कर खा जाते हैं। और & की तो बात हो क्या है, इस तियंच योनि में भूखी माता भी अपने बच्चों को खा जाती है । इसके 8 & अतिरिक्त आकाश में निर्द्वन्द्व विहार करने वाले पक्षी प्रावि अकाल में ही काल के गाल में जा 8
पहुंचते हैं। वर्तमान के कसाई खानों में असंख्य मूक प्राणी प्रतिदिन तलवार के घाट उतारे ज ते हैं। 8 तथा उत्पन्न होने के पूर्व ही अण्डे को अवस्था में असंस्य प्राणो समूचे रूप में खा लिये जाते हैं । भूख, प्यास के दुःस, बोझा जाने के दुःख, नपुंसक (माधो) करने में महान दुःख, सर्दी गर्मों में सहने के दुःख तो सर्व जगत के प्रत्यक्ष ही हैं । अभी तक तो मांस भक्षियों के लिए पशु मारे जाते थे 8 परंतु अब तो कोमल चमड़ा प्राप्त करने के लिए गर्भ धारण करने वाले पशु अत्यन्त निर्दयता पूर्वक मारे जाते हैं । कहने का सारांश यह है कि इस प्रकार असंख्य कुःखों को यह जीव त्रिर्यञ्च गति में भोगता है जिन्हें यदि करोड़ों व्यक्ति भी एक साथ कहने को उद्यमी हों तो सहस्रों वर्षों तक सहस्र जिह्वा से भी नहीं कह सकते हैं । इस प्रकार जब यह जोब संक्लेश पूर्वक मरता है तो नकं गति में जाकर उत्पन्न होता है इसलिए नकंगति के दुःखों का यहां वर्णन करते हैंचौपाई-तहां भूमि परसत दुख इसो, बीछू सहस उसे तन तिसो ।
तहां राध शोणित वाहिनी, कृमि-कुल-कलित, देह दाहिनी ॥१०॥ सेमर तरु जुत दल असि पत्र, असि ज्यों देह विदारे तन । मेरु समान लोह गलि जाय, ऐसी शीत उष्णता थाय ॥११॥ तिल-तिल करें देह के खण्ड, असुर भिड़ावै दुष्ट प्रचण्ड । सिन्धु नीर ते प्यास न जाय, तो पण एक बून्द लहाय ॥१२॥
पड्ठ