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रिससहस्तिहिं जं कियड तवु संजमु उवयारु । कोह महान संगमिण सो दहि किजइ च्छारु ॥ २१ ॥ माण मडप्फर विष्फुरइ विणइ न वहइ कोइ । विजयविङ्कणह निठुरह नाणविदत्ति न होइ ॥ २२ ॥ विशु नाणेण चरितु नहु विण चरणेण न मुक्खु । मुखविहीणा (ण) कहवि नहु होइ निरंतर सुक्खु ॥ २३ ॥ ता मिल्देविणु माणभड विणय निवेसर्हि चित्तु । अव सहेसहि दुक्खडां भवपंजरि निक्खिस्तु ॥ २४ ॥ माया (मामा ? ) परवंचणु करहिं परवचंतई पाउ । जीवहं पावपरव्वसह नरय तिरिक्खउ ठाउ ॥ २५ ॥ उती लोहह लहरि झंपिय जेण झडत्ति ।
तसु भवजलहिसमुत्तरणि फुरइ समग्गलसत्ति ॥ २६ ॥ जीव कसाय न निज्ज (जि) गइ अनु (णु) विष्फुरइ सरोस काई निहत्थर नीससिहिं करइ सरीरह सोसु ॥ २७ ॥ जेणि न रुद्धउ विसयसहि धावंत मणुमीणु ।
तेणि भमेव भवगहणि जंपंतइ जण दीणु ॥ २८ ॥
संजमबंधणि बंधि धरि धावन्त मणहत्थि । जर कादिति अहु सुक्कल ता पाडिहर अणत्थि ॥ २९ ॥
जीह जि वन जिणह गण दंसण नाण चरित ।
सा सलहिज्ज सज्जणिहिं पयडियपवयणतत्त ॥ ३० ॥
जा परदोस समुहवइ मिच्छपवत्तणसज्ज ॥
सा जीहा मह मुहकुहरि जिण जम्मवि म करिज ॥ ३१ ॥ जिणचंदगुरुजणविणउ तबु संजम्नु उवयारु ।
जं किज्जइ खणभंगुरिण देहह इत्तिउ सारु ॥ ३२ ॥ जो संतावर अणुदियहं छविजीवनिका | नरयनिबंधणकम्मर बलि किज्जत सो काउ ॥ ३३ ॥
( दण्ड दमविम) णु वसि करहु धरि संजमि अप्पाणु । • मोह महाबलु निज्जिणिहि जिम पावहि निरवाणु ॥ ३४ ॥
समणह भूसण गयवसण संजममंजरि एह ।
(सिरि) महेसरसूरि गुरु कन्नि कुणंत खणेह ॥ ३५॥
III The Commentary on this work by a pupil of Hemahamsasūri is also important for the Apabhramśa. The commentator must have lived before A. D. 1505, the date of the copy of the Sanjamamanjari together with its commentary. It contains lots of Apabbramsa quotations, some of very con⚫ siderable length. The smaller ones are generally of the nature of Subhaṣita verses that must have been very common in the days of the commentator. cf.
दिठ्ठ जो न वि आलवइ कुसल न पुच्छर वत्त । लाखत न वि जाईई रे इयडा नीसस ॥