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२. निक्किार के दश जन्म नहीं हो सकते । (भावसं ग्रह-१२०)
यदि रुद्र तीनों लोकों को भस्म करते हैं तो वह गंगा और गौरी के साथ कहाँ रहते हैं ? (भाव सं. १२२)
सम्पूर्ण विश्व को जला देने वाला पूँज्यतत्व को कैसे प्राप्त होता है (भा. सं. १२३)
क्षणिकैकान्त बादी बौद्ध सब कुछ मणिक मानते हैं। उनके द्वारा समस्त वस्तुओं को क्षणिक मानने में निम्नलिखित दोष आते हैं
१. एक प्रभाव रूप वस्तु कभी माक रूप नहीं बनती। २. क्षणभङ्गवाद को मानने पर स्मरण प्रादि को असंभव मानना पड़ेगा। ३. यह वही शिष्य है तथा यह वही गुरु है, इस प्रकार का प्रत्यभिज्ञान नहीं
होगा। ४. अपये किए हुए काम का फल भोगने की सम्भावना नहीं रहेंगी। यदि कहां
जाय कि वासक मन द्वारा किए गए काम का फल वास्य मन भोगता है तो इसका उत्तर यह है कि अणमा बास्य-वासक भाव ही असंभव है; साक इस सम्बन्ध में कोई भी कल्प संभव नहीं है। वासमा बासक मनं से भिन्न है या अभिन्न ? यदि भिन्म है तब तो वासक मन वासना से शून्य हुथा। ऐसी दशा में वह किसी अन्य मन को वासित नहीं कर सकता। यदि वासना वासक मन से अभिन्न है तब इस वासना का वास्य मन में प्रवेशं उसी प्रकार असंभव होगा, जैसे कि बासक मन के स्वरूप का वास्य मन में प्रवेश असंभव है।
५. क्षणिक वस्तु में अर्थक्रियाकारिता सम्भव नहीं है। क्योंकि एक क्षणिक वस्तु
अपनी उत्पत्ति के तत्काल बार नष्ट हो जाती है। जगत् की वस्तुओं में दिखाईने वाले रूप रूपान्तरण से भी क्षणिकवाद की सिद्धि नहीं होती; क्योंकि सवा इन वस्तुओं में नए रूप की उत्पत्ति होते समय भी उनका पुराना रूप ज्यों का त्यों बना रहता है (हरिभद्र सूरि: शास्त्रवार्तासमुच्चय) ।
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