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अन्य जो काष्ठा संघी आदि हैं, वे मिथ्यात्व का प्रवर्तन करने से आगामी काल में चारों गतियों में निरन्तर दुःख प्राप्त करेंगे।
इति सग्रन्थमोक्षमार्ग-श्वेताम्बरमत निराकरणम् मिथ्यात्वालंबनापाकात् प्रयान्ति नारकों गतिम् । यत्रास्ति दुःखमत्युग्रमन्योन्योदीरितं महत् ॥२८६॥
मिथ्यात्व के आलंबन के परिपाक से नरकगति को जाते . हैं । जहाँ पर एक दूसरे से प्रेरित अत्यन्त उग्र दुःख है ।
तस्मान्निर्गत्य तैरश्ची गति प्राप्यानुभूयते । भारातिवाहनाद्ययभीम दुःखमनेकधा ॥२८७॥
नरक से निकलकर तिर्यञ्चगति को पाकर अत्यन्त भार वहन करना आदि अनेक प्रकार का भयंकर दुःख है ।
कथंचिन्मानुषं जन्म प्राप्तं तत्रापि सह्यते ।
प्रर्थार्जनविहीनत्वाददुखं स्वोदरपूर्तये ॥२८॥ कथंचित् मनुष्य जन्म भी प्राप्त हुआ तो उसमें अपने उदर की पूर्ति के लिए अर्थार्जन से विहीन होने के कारण दुःख सहा जाता है।
काकतालीयकन्यायादगतिर्दैवी समाप्यते।
तत्रास्ति मानसं दुःखं होनाधिकविभूतितः ॥२८६॥ काकतालीय न्याय से देवगति प्राप्त होती है। उसमें भी हीनाधिक विभूति होने से मानसिक दुःख प्राप्त होता है ।