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नोपचारो विना मुख्यं नरसिंहोपचारवत् ।
तथोपचारमाश्रित्य कालोऽस्ति व्यावहारिकः ॥३६६॥ नृसिंह के उपचार के समान उपचार के बिना मुख्य नहीं । है । उपचार का आश्रय कर व्यावहारिक काल है।
मुख्यकालस्य पर्यायः समयादिस्वरूपवान् ।
व्यवहारो मतः कालः कालज्ञानप्रवेदिनाम् ॥३७०॥ काल के ज्ञान को जानने वालों ने मुख्य काल की पर्यायें जो समयादि रुप वाली हैं, व्यवहारकाल मानी हैं।
तं कालाणुस मुल्लंध्य मंदं गच्छति पुद्गलः ।
यावता कालमात्रेण स कालः समयात्मकः ॥३७१॥
उस कालाण का उल्लंघन कर जितने काल मात्र में पुद्गल मन्दगति से गमन करता है वह काल समयात्मक है।
तस्मादावलिपूर्वा ये मुहूर्ताद्याश्च पर्ययाः ।
मर्यक्षेत्र प्रवर्तन्ते भानोर्गतिवशाद्भुवि ॥३७२॥
प्रावलि से लेकर मुहूर्तादि जो पयायें मर्यक्षेत्र में प्रवृत्त होती हैं, वे पृथ्वी पर सूर्य की गति के वश होती हैं ।
काल: । गुणपर्ययवदद्रव्य सन्दोहो वर्ण्यते बुधः।
सप्तभंगों समालिग्य स्वान्यद्रव्यस्वभावतः॥३७३॥ विद्वानों ने सप्तभङ्गी को स्वीकार कर अपने और अन्य द्रव्य के स्वभाव के अनुसार गुण और पर्याय वाले द्रव्य के समूह का वर्णन किया है। १ इमे शब्दा: क-पुस्तके न सन्ति ।