Book Title: Bhav Sangrah
Author(s): Vamdev Acharya, Ramechandra Bijnaur
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 174
________________ स्थूल काययोग को छोड़कर, सूक्ष्म वचन और मनोयोग में स्थिति को करके वह बादर काययोग को भी सूक्ष्म करता है। स सूक्ष्मे काययोगेऽथ स्थिति कृत्वा पुनः क्षणम् । निग्रहं कुरुते सद्यः सूक्ष्मवाविचत्तयोगयोः ॥७४६॥ अनन्तर वह सूक्ष्म काययोग में स्थिति को करके पुनः क्षणभर में सूक्ष्म वाक्योग और मनोयोग के योग को शीघ्र निग्रह करता है । ततः सूक्ष्मे वपुर्योगे स्थिति कृत्वा क्षणं हि सः। सूक्ष्मनियं निजात्मानं चिद्रूपं चिन्तयेज्जिनः ॥७५०॥ अनन्तर सूक्ष्म काययोग में स्थिति करके वह जिन क्षणमात्र के लिये सूक्ष्म क्रिया वाली निजात्मा के चिद्रूप का विचार करता है। ध्यानध्येयादिसंकल्पैविहीनस्यापि योगिनः । विकल्पातीत भावेन प्रस्फुरत्यात्मभावना ॥७५१॥ ध्यान, ध्येय आदि संकल्पों से विहीन भी योगी के विकल्पातीत भाव से प्रात्मभावना प्रस्फुरित होती है । अन्ते तद्धयानसामर्थ्याद्वपुर्योगे स सूक्ष्मके। तिष्ठन्नूस्पिदं शीघ्र योगातीतं समाश्रयेत् ॥७५२॥ १ जिनात्मानं ख. ।

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