Book Title: Bhav Sangrah
Author(s): Vamdev Acharya, Ramechandra Bijnaur
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 181
________________ १७२ प्रसन्न था, आसक्तिरुपी रात्रि के लिए जो सूर्य थे, ऐसे उनके शिष्य लक्ष्मीचन्द्र मुनि पृथ्वीमण्डल पर विजयशील हों। श्रीमत्सर्वज्ञपूजाकरणपरिणतस्तत्वचिन्तारसालो। लक्ष्मीचन्दाह्निपद्ममधुकरः श्रीवामदेवः सुधीः ॥ उत्पत्तिर्यस्य जाता शशिविशदकुले नैगमश्री विशाले। सोऽयं जीयात्प्रकामं जगति रसलसद्भावशास्त्रप्रणेता॥७८१॥ (अन्तरङ्ग और बहिरङ्ग) लक्ष्मी से युक्त सर्वज्ञ की पूजा करने में लगे हुए, तत्त्वचिन्तन के रमिक, लक्ष्मीचन्द्र के चरणकमलों के भ्रमर सुधी श्री बामदेव हए । वेदलक्ष्मी अथवा नैगमलक्ष्मी से विशाल, चन्द्रमा के समान निर्मलकुल में जिनकी उत्पत्ति हुई, संसार में रस से सुशोभित, भावशास्त्र के प्रणेता वे संसार में अत्यधिक रुप से जियें । यावद्द्वीपाब्ध्यो मेर्यावच्चन्द्रदिवाकरौ । तावद्वद्धि प्रयात्युच्चैविशदं जैनशासनम् ॥७८२॥ जब तक द्वीप, समुद्र और मेरु हैं, जब तक सूर्य और चन्द्रमा हैं तब तक अत्यधिक रुप से विशद जैनशासन वृद्धि को प्राप्त हो। _ इति चतुर्दशमयोगि गुणस्थानम् । इति श्री मद्वानदेव पण्डित विरचितः भावसंग्रहः समाप्तः । समा

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