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इस प्रकार लवण सागर के दोनों तटों में अडतालोस और कालोदसमुद्र में इसी प्रकार ६६ द्वीप माने गये हैं ।
एकोरूका गुहावासा: स्वादुमृन्मयभोजनाः ।
शेषास्तरुतलावासाः पत्रपुष्पफलाशिनः ॥५८८॥ एक पैर वाले मानव पर्वत की गुफाओं में रहते हैं और सुस्वादु मिट्टी का आहार करते हैं । शेष अन्तद्वीपज मानव वृक्षों के नीचे रहते हैं और पत्र, पुष्प तथा फलों का आहार करते हैं।
न जातु विद्यते येषां कृतदोषनिकृतनम् ।
उत्पादोऽत्र भवेत्तेषां कषायवशगात्मनाम् ॥५८६।। जिनके किए हुए दोष करें नहीं, उन कषाय के वशवर्ती जीवों का यहाँ उत्पाद होता है ।
सूतकाशुचिदुर्भावव्याकुलादिम (त्व) संयुताः।
पात्रे दानं प्रकुर्वन्ति मूढा वा गविताशयाः॥५६०॥
सूतक, अशुचि, दुर्भाव, व्याकुलतादि से युक्त मूढ़ अथवा गर्वयुक्त अभिप्राय वाले (कु) पात्र में दान करते हैं।
पंचाग्निना तपोनिष्ठा मौनहीनं च भोजनम् । प्रोतिश्चान्यविवादेषु व्यसनेष्वतितीव्रता ॥५६१॥ दानं च कुत्सिते पात्रे येषां प्रवर्तते सदा।
तेषां प्रजायते जन्म क्षेत्रेश्वेतेषु निश्चितम् ॥५६२॥ १ क-पुस्तके अस्मात् ५८९ श्लोकात्पूर्व द्विकलमिति पाठः । ख-पुस्तके तु ५९० श्लोकात्पूर्व त्रिकलमिति । २ वक्रादिमसयुताः ख-पाठः ।