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निन्द्यासु भोगमूभीषु पल्यप्रमितजीविनः ।
नग्नाश्च विकृताकारा भवन्ति वामहष्टयः ॥५७७॥ मिथ्यादृष्टि निन्द्य भोगभूमियों में पल्यमात्र की आयु वाले नग्न तथा विकृत आकार वाले होते हैं ।
लवणाब्धेस्तटं त्यक्त्वा शतघ्नीं पंचयोजिनीम् ।
दिग्विदिक्षु चतसृषु पृथक्कुभोगभूमयः ॥५७८॥
लवण समुद्र के तट को छोड़कर पाँच सौ योजन का एक विशाल पत्थर है, जिसमें लोहे की शलाकायें जड़ी हुई हैं। चार दिशात्रों और विदिशाओं में पृथक् कुभोगभूमियाँ हैं ।
सैकोरुकाः सशृङ्गाश्च लांगुलिनश्च मूकिनः ।
चतुर्दिक्षु वसन्त्येते पूर्वादिक्रमतो यथा ॥५७६॥ पूर्व दिशा में एक टाँग वाले मनुष्य हैं, पश्चिम दिशा में पूंछ वाले मनुष्य हैं, उत्तर दिशा में गूगे मनुष्य हैं और दक्षिण दिशा में सींग वाले मनुष्य हैं ।
विदिक्षु शशकर्णाख्याः सन्ति सकुलिकणिनः ।
कर्णप्रावरणाश्चैव लम्बकर्णाः कुमानुषाः॥५८०॥ चारों विदिशाओं में क्रम से खरगोश के समान कान वाले, शष्कुली अर्थात् मछली अथवा पूड़ी के समान कान वाले, प्रावरण के समान कान वाले और लम्बे कान वाले मनुष्य हैं ।
शतानि पंच सार्धानि सन्त्यज्य वारिधेस्तटम् ।
अन्तरस्थदिशास्वष्टौ कुत्सिता भोगभूमयः ॥५८१॥ १. निन्द्या: कुभोगभूमिषु ख. ।