________________
१६२
आठ प्रातिहार्यों से युक्त, समस्त प्रातिशयों से भूषित, मुनियों के समूह से आराधित, इन्द्रों के द्वारा पूजित चरण वाले वे समस्त पृथ्वी पर विहार करते हुए, भव्यों के समूह को प्रतिबोधित करते हुए, धर्म रूपी अमृत की वर्षा करते हुए देवसभा में सुशोभित होते हैं।
कतिचिद्दिनशेषायुनिष्ठाप्य यौगवैभवम्।
अन्तर्मुहूर्तशेषायुस्ततृतीयं ध्यानमर्हति ॥७३६॥ कुछ दिन आयु शेष रह जाने पर योग वैभव का निरोधकर शेष आयु अन्तर्मुहूर्त रह जाने पर तृतीय शुक्लध्यान के योग्य होता है।
षण्मा'सायुस्थितेरन्ते यस्य स्यात्केवलोदगमः ।
करोत्यसौ समुद्धात्मन्ये कुर्वन्ति वा न वा ॥७३७॥ छह माह आयु की स्थिति के मध्य जिसके कैवल्य की उत्पत्ति होती है, वह समुद्घात करता है, अन्य समुद्घात करते हैं अथवा नहीं करते हैं।
यस्यास्त्यघातिनां मध्ये किंचिन्न्यूनायुषः स्थिति ।
तत्समीकरणावाप्त्यै समुद्धाताय चेष्टते ॥७३८॥ जिसकी अघातिकर्मों के मध्य आयुकर्म की किंचित् न्यून स्थिति है, वह समीकरण की प्राप्ति के लिए समुद्घात हेतु चेष्टा करता है।
षण्मासायुषि शेषे संवृता ये जिनाः प्रकर्षण । ये यान्ति समुद्धातं शेषा भाज्याः समुद्धाते ।।१।।