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शब्दो बन्धस्तमश्छाया सूक्ष्मस्थौल्यातपद्य ति। भेद संस्थानमित्येते पर्यायास्तस्य कीर्तिताः ॥३६०॥
शब्द, बन्ध, तम, छाया, सूक्ष्म, स्थौल्य, आतप, द्युति, भेद तथा संस्थान ये पुद्गल के पर्याय कहे गए हैं ।
पृथ्वी तोयं तथा च्छाया चाक्षुषो नाक्षगोचरः। कर्माणि परमाण्वन्तं तेषां सौक्षम्यं यथोत्तरम् ॥३६१॥
पृथ्वी, जल तथा छाया चाक्षुष है। कर्म से लेकर परमाणु तक इन्द्रिय गोचर नहीं हैं, उनमें उत्तरोत्तर सूक्ष्मता है ।
स्थलस्थलं तथा स्थलं स्थूलसूक्ष्मास्ततः परम् ।
सूक्ष्मस्थूलाच सूक्ष्माणि सूक्ष्मसूक्ष्मा इति क्रमात् ॥३६२॥ पुद्गलों का क्रम इस प्रकार है-स्थूल-स्थूल, स्थूल, स्थूल सूक्ष्म, सूक्ष्म स्थूल, सूक्ष्म तथा सूक्ष्म सूक्ष्म ।
पुद्गलः । गतिहेतुर्भवेद्धर्मो जीवपुद्गलयोर्द्वयोः।
यथोदकं हि मत्स्यानां सन्तिष्ठतोस्था न सः ॥३६३॥
जीव और पुद्गल दोनों की गति का हेतु धर्म द्रव्य होता है । जिस प्रकार जल मछलियों की गति में निमित्त होता है किन्तु ठहरते हुए जीव पुद्गलों का वह निमित्त नहीं है ।
धर्मः । अधर्मः स्थितिदानाय हेतर्भवति तदद्वयोः:
पथिकानां यथाच्छाया गच्छतोः स न धारकः ॥३६४॥ १ सूक्ष्मो . ख.।