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११० अथवा तत्त्वतः सिद्धचक्र नामक यन्त्र को ऊपर उठाकर सत्पंच परमेष्ठी नामक गणधरवलय के क्रम से सम्यक् शास्त्र के उपदेश से चिन्तामणि नामक यन्त्र की पूजा कर तत्तत् मंत्रों से यथाक्रम जप करें।
तद्यगन्धतो भाले विरचय्य विशेषकम्। सिद्धशेषां प्रसंगृह्य न्यसेन्मूर्टिन समाहितः ॥४६६॥
उस यंत्र के गन्ध से मस्तक पर तिलक लगाकर सिद्धशेष का संग्रह कर समाहित चित्त से सिर पर रखे ।
चैत्यभक्त्यादिभिः स्तूयाज्जिनेन्द्रं भक्तिनिर्भरः।
कृत्कृत्यं स्वमात्मानं मन्यमानोऽद्य जन्मनि ॥४६७॥
भक्ति से भरे होकर अपने आपको इस जन्म में कृतकृत्य मान चैत्य भक्त्यादि से जिनेन्द्र भगवान् की स्तुति करे।
संक्षेपस्नानशास्त्रोक्तविधिना चाभिषिच्य त म ।
कुर्यादष्टविधां पूजां तोयगन्धाक्षतादिभिः ॥४६८॥ संक्षेप में कही शास्त्रोक्त विधि से स्नान व उनका अभिषेक कर जल, गन्ध, अक्षतादि से आठ प्रकार की पूजा करे ।
अन्तर्मुहूर्तमात्रं तु ध्यायेत् स्वस्थेन चेतसा।
स्वदेहस्थं निजात्मानं चिदानन्दै कलक्षणम् ॥४६६॥ फिर स्वस्थचित्त से अन्तर्मुहूर्तक अपने शरीर में स्थित चिदानन्दैक लक्षण निजात्मा का ध्यान करे । १ वा ख.। २ च ख । ३ लोकोऽयं, ४९९ श्लोकादुत्तरं। ४ श्लकोयं ४९८ श्लोकात्पूर्व ख-पुस्तके।