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पूजा पाँच प्रकार की होती हैं-१. नित्यपूजा २. चतुर्मुख पूजा ३. कल्पद्रुम पूजा ४. आष्टाह्निकी पूजा और ५. दिव्यध्वज (इन्द्रध्वज)।
स्वगेहे चैत्यगेहे वा जिनेन्द्रस्य महामहः । निर्माप्यते यथाम्नायं नित्यपूजा भवत्यसौ ॥५५॥ अपने घर में या जिनमन्दिर में ग्राम्नाय के अनुसार महामह निमिति नित्य पूजा होती है ।
नित्या
नृपर्नुकुटबद्धाद्य : सन्मण्डपे चतुर्मुखे।
विधीयते महापूजा स स्याच्चतुर्मुखो महः ॥५५६॥
चतुर्मुख सन्मण्डप में मुकुटबद्ध आदि राजारों द्वारा जो महापूजा की जाती है, वह चतुर्मुखपूजा होती है ।
चतुर्मुखा। कल्पद्रुमैरिवाशेषजगदाशा प्रपूर्यते ।
चक्रिभिर्यत्रि पूजायां सा स्यात्कल्पद्रुमामिधा ॥५५७॥ जिस पूजा में चक्रवर्तियों के द्वारा समस्त जगत् की पाशा पूर्ण की जाती है, वह कल्पद्र म नाम वाली होती है ।
___ कल्पद्रुमा नन्दीश्वरेषु देवेन्द्रीपे नन्दीश्वरे महः ।
दिनाष्टकं विधीयेत सा पूजाष्टाह्निकी मता ॥५५८॥ नन्दीश्वर पर्व में इन्द्रादि देवों द्वारा नन्दीश्वर द्वीप परपाठ दिन जो पूजा को जातो है, वह आष्टाह्निकी मानी गई है।