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फिर भी जो जिनेन्द्र भगवान् के कवलाहार कहते हैं, वे मद्य के प्रास्वादन से मदोन्मत्त होकर घूमने वाले व्यक्तियों के समान कहते हैं। इति' केवल भुक्ति निराकरणम् ।
अथ स्त्रीणां भवे तस्मिन मोक्षोऽस्तीति वदन्ति ये।
ते भवन्ति महामोहग्रस्ता जना इव ॥२४०॥
जो स्त्रियों का उसी भव से मोक्ष है, इस प्रकार कहते हैं, वे महामोह से ग्रस्त मनुष्यों के समान होते हैं ।
यद्यपि कुरुते नारी तपो.प्यत्यन्तदुःसहम् । ___तथापि तद्भवे तस्या मोक्षो दूरतरो हि सः ॥२४१॥
यद्यपि नारी अत्यन्त दु:सह तप करतो है. तथापि उसका वह मोक्ष उस भव में दूरतर है।
तस्या जीवो न कि जीवो जीवमात्रोऽथवा स्मृतः।
मोक्षावाप्तिर्न जायते नारीणां केन हेतुना ॥२४२॥
उसका जीव क्या जीव नहीं है, अथवा जीवमात्र माना गया है । अतः किस हेतु से नारी के मोक्ष प्राप्ति नहीं होती है ?
जीव सामान्यतो मुक्तिर्यद्यस्ति चेत्प्रजायताम् ।
मातंगिन्याद्यशेषाणां नारीणामविशेषतः ॥२४३॥ यदि जीव सामान्य को मुक्ति है तो हथिनी आदि सामान्य नारियों की सामान्य रूप से मुक्ति हो । १ इति ख पुस्तके नास्ति ।