________________
संत्यज्य वेदकं याति प्रशान्तात्मिकया हशम । गत्वा वा सादिमिथ्यात्वं द्वितीया सा गुच्यते ॥२६॥
प्रशान्तात्मिक दृष्टि को त्यागकर वेदक सम्यक्त्व जाता है । सादि मिथ्यात्व की ओर गया हुआ वह द्वितीयोपशम कहा जाता है।
प्राद्योपशमसम्यक्त्वात् प्रच्युतो याति वामताम् । च्युतोऽथवा द्वितीयं स्यान्मिथ्यात्वं याति वा न वा ॥२६६॥
आदि उपशम सम्यक्त्व से च्यूत होकर विपरीत हो जाता है द्वितीय से च्युत हाकर मिथ्यात्व को प्राप्त होता है, अथवा नहीं होता है। द्विकलम्
प्राद्योपशमसम्यक्त्वरत्नाद्रेर्वा परिच्युतः एकतरोदपे जाते मध्येऽनन्तानुबन्धिनाम् ॥२६७॥ समयादावलीषट्कं कालं यावन्न गच्छति । मिथ्यात्वभूतलं जीवस्तावत्सासादनो भवेत् ॥२६॥
आदि उपशम सम्यक्त्व रूपी पर्वत से च्युत हुअा अनन्तानुबन्धि क्रोध, मान, माया, लोभ में से किसी एक का उदय होने पर जब तक एक समय से छः प्रावली काल तक जीव जब तक मिथ्यात्व रूपी भूतल पर नहीं जाता है, तब तक सासादन गुणस्थान होता है।
अपूर्वश्वभ्रजीवेषु लब्ध्यपर्याप्तजन्तुषु ।
सर्वेष्वपि न जायेत सासादनो विनिश्चितम् ॥२६॥ १ प्रशान्तात्मिकयोदृशं क। २ द्वितीयस्मात् ।