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वेदवादी ऐसा कहते हैं कि ब्रह्मा जगत् का कर्ता है, शिव जगत् का संहारकर्ता है और विष्णु रक्षक है ।
यदि ब्रह्मा जगत्कर्ता तत्कि शकस्य संसदि ।
विलोक्याप्सरसां वृन्दं जातो भोगाभिलाषुकः ॥१४॥ यदि ब्रह्मा जगत् का कर्ता है तो इन्द्र की सभा में अप्सरात्रों को देखकर वह भोगाभिलाषी क्यों हो गया ?
ततोऽसौ स्वास्पदं व्यक्त्वा कतु लग्नस्तपो भुवि ।
तावद्भीत्या कृतं देवस्तत्तपोविघ्नकारणम् ॥६५॥ अनन्तर वह अपने स्थान को त्यागकर पृथ्वी पर तप करने लगा। तब डरकर देवों ने उसके तप में विघ्न किया ।
दृष्ट्वा तिलोत्तमानृत्यं तत्राभूद्विषयातुरः ।
गत्वा तदन्तिकं गाढमाश्लेषं याचते हि सः ॥६६॥ वह तिलोत्तमा के नृत्य को देखकर विषयातुर हो गया और उसके समीप में जाकर गाढ़ आलिंगन की याचना करने लगा।
अनिच्छन्ती तिरोभूतां तां गवेषयतोऽभ-त् ।
तस्मिन्मुखानिचत्वारि पंचमं च खराननम् ॥७॥ जब वह (तिलोत्तमा) ब्रह्मा को न चाहती हुई तिरोभूत हो गई तो उसे खोजते हुए उसके चार मुख हो गए और पाँचवां गधे का मुख हो गया।
हास्यास्पदीकृतो देवस्ततः क द्धोतिनिर्भरम् । खरास्येन भ्रमन्तोऽसौ भक्षणार्थ मरुद्गणान् ॥८॥