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इस प्रकार यह विपरीत मिथ्यात्व का कथन मेरे द्वारा किया गया। अब क्षणिकैकान्त नामक मिथ्यात्व के विषय में कहते हैं।
क्षणिकैकान्त मिथ्यात्ववादी बौद्धो वदत्यतः । उत्पन्नश्च प्रतिध्वंसी भवत्यात्मा प्रतिक्षणम् ॥१३४॥
क्षणिकैकान्त मिथ्यात्ववादी बौद्ध कहता हैं कि प्रात्मा प्रतिक्षण उत्पन्न और विनाश होता है।
क्षणिके स्वीकृते जोवे क्षणार्ध्वमभावतः । पुण्यं पापं च तत्रापि कः प्राप्नोति पुरातनम ॥१३५॥
जीव को क्षणिक मान लेने पर, क्षण के बाद अभाव : होने से कौन पुराने पुण्य, पाप को प्राप्त होता है ?
संयमो नियमो दानं कारुण्यं व्रतभावना । सर्वथा घटते नेषां नित्यक्षणिक वादिनाम् ॥१३६॥
नित्य क्षणिकवादियों के संयम, नियम, दान, करुणा तथा व्रत भावना सर्वथा घटित नहीं होती है।
तेषां' बन्धो विना बन्धं देहो देहं विना तथा । नास्ति मोक्षस्ततो नूनं नास्तिकत्वं प्रसज्यते ॥१३७॥
उनके यहाँ बन्ध नहीं है। बन्ध के अभाव में देह तथा देह के अभाव में मोक्ष नहीं हैं, इस प्रकार नास्तिकपना प्रसक्त होता है। १ त्यद: ख.। २ नैषां. ख.। ३ न हि ख. ।