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यदि कहो कि आहार के बिना कहीं भी शरीर की स्थिति नहीं देखी जाती है, अतः केवली निश्चित रूप से सदा आहार ग्रहण करते हैं।
नोकर्मकर्मनामा च लेपाहारोःथ मानसः।
प्रोजश्च कवलाहारश्चेत्याहारो हि षड्विधः ॥२२६॥ तो (हमारा कहना है) कि आहार छः प्रकार का होता है-१. नोकर्माहार २. कर्माहार ३. लेपाहार ४. मानसाहार ५. प्रोजाहार ६. कवलाहार ।
एवमनेकधाहारो देहस्य स्थिति कारणम् ।
तन्मध्ये कवलाहारो वान्यो देहस्थितौ भवेत २२७॥ इस प्रकार अनेक प्रकार का आहार देह की स्थिति का कारण होता है। इनमें देह की स्थिति के लिए कवलाहार या अन्य आहार होता है।
नोकर्मकर्मनामानमाहारं गृह णतोऽर्हतः।
देहस्थितिर्भवत्येतदस्माकमपि सम्मतम् ॥२२८॥
अर्हन्त भगवान् नोकर्म और कर्म नाम वाले आहार का ग्रहण करते हैं । इससे उनकी देह स्थिति होती है, यह हमें भी मान्य है।
पाहोश्विकवलाहारपूर्विका स्यात्तनुस्थितिः । त्वयैवं भण्यते तत्र प्रसिद्धा व्यभिचारिता ॥२२६॥
आपने जो कहा कि कवलाहारपूर्वक शरीर की स्थिति होती है, उसमें व्यभिचार प्रसिद्ध है।