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४२ हम जैसे श्रुतधारो मुनि यहां हैं, उन्हें छोड़कर अज्ञानी गौतम ध्वनि का पात्र हुआ ।
संचित्यैवं कधा तेन दुर्विदग्धेन जल्पितम् ।
मिथ्यात्वर्कमणः पाकाद ज्ञानत्वं हि देहिनाम ॥१७६।।
इस प्रकार विचार कर क्रोधपूर्वक उस दुर्बद्धि ने कहा कि मिथ्यात्वकर्म के परिपाक से देहधारी अज्ञानी हैं ।
हेयोपादेयविज्ञानं देहिनां नास्ति जातुचित् ।
तस्मादज्ञानतो मोक्ष इति शास्त्रस्य निश्चयः ॥१८०॥ शरीरधारियों को कुछ भी हेयोपादेय का ज्ञान नहीं है। इस कारण अज्ञान से मोक्ष होता है, यह शास्त्र का निश्चय है ।
यत्कालान्तरितं वस्तु दृष्टपूर्वमनेकधा।
यद्यज्ञानी कथं तस्य चेतृत्वं दृश्यतेऽडि.गनः॥१८१॥
जो कालान्तरित वस्तु पहले अनेक रूपों में देखी, उसके विषय में यदि अज्ञानी है तो प्राणियों के चेतनता कैसी देखी जाती है ?
अयं बन्धुः पिता सूनुमति भगिनी प्रिया।
एषां पृथविक्रया तस्य ज्ञानहीनस्य दुर्घटा ॥१८२॥ उस ज्ञानहीन के यह बन्धु है, पिता है, माता है, बहिन है, प्रिया है, इन सबकी पृथक्क्रिया कठिनाई से घटित हो सकती है।
पंचाक्षविषयाः सर्वैः सेव्यन्ते स्नेच्छया कथम् । पाषाणस्तंभवत्तस्य न काचित् कर्तृता मता ॥१८३॥