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एवं सुवर्णगर्भस्य कर्त्तत्वं नोपजायते ।
अनाधकृत्रिमस्यास्य विश्वस्येति विनिश्चयः ॥११३॥
इस प्रकार ब्रह्मा के कर्तृत्व नहीं बनता है । यह विश्व अनादि और अकृत्रिम है, यह निश्चय है ।
चराचरमिदं विश्वं सशैलवन सागरम् ।
कृत्वा स्वोदरमध्यस्थं संरक्षति जर्नादनः ॥११४॥ पर्वत, वन और समुद्रों सहित इस चराचर विश्व को अपने उदर के मध्य में स्थित कर जनार्दन (विष्णु) संरक्षण करता है।
असौ सन्तिष्ठते कस्मिन् स कि लोकादबहिर्भवः ।
तस्याङगनाश्च सैन्यानि वव तिष्ठन्ति सहोदराः ॥११॥
तब वह विष्णु कहाँ ठहरता है ? क्या वह लोक के बाहर है ? उसकी अङ्गनायें और सहोदरा सेनायें कहाँ ठहरती है ?
जानकी हरणासक्तः कृतदोषो दशाननः ।
हतो रामेण तौ स्यातां लोकान्तर्वतिनौ न किम् ॥११६।। जानकी हरण में आसक्त कृत दोष रावण राम के द्वारा मारा गया। वे दोनों लोक के अन्तर्वर्ती क्यों नहीं हुए ?
सारथ्यं पाण्डुपुत्रस्य कृत्वा कृष्णो निपातयेत ।
कौरवान् निखिलास्तेपि विश्वान्तर्वतिनो न किम् ॥११७॥
अर्जुन का सारथी बनकर श्रीकृष्ण ने समस्त कौरवों - को गिरा दिया। वे क्या लोक के अन्तर्वर्ती नहीं हुए।