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मिथ्यात्वादि तीन गुणस्थानों में मिश्र, श्रदयिक और पारिणामिक भाव होते हैं । असंयतादि चार तथा चार उपशास्तों में समस्त भाव पृथक्-पृथक् रूप से होते हैं ।
प्राद्य विना चतुर्भावाः क्षपकश्र णिसंभवाः । features for त्रयः स्युर्योग्ययोगिनोः ॥१६॥
पशमिक के अतिरिक्त चार भाव क्षपक श्रेणी में संभव हैं । सयोगकेवली व प्रयोगकेवली के औपशमिक और मिश्र के बिना तीन भाग होते हैं ।
सिद्ध द्वावेव जायेते क्षायिकः पारिणामिकः । गुणस्थानान्यतो वक्ष्ये तल्लक्षण लक्षितम् ॥२०॥
सिद्धों के क्षायिक और पारिणामिक दो ही भाव होते
हैं । गुणस्थान तथा उनके लक्षण मैं आगे कहूंगा ।
मिथ्या सासादनं नाम मिश्र मसंयताह, वयम् । विरताविरताख्यं स्यात् प्रमत्तं चाप्रमत्तकम् ॥२१॥ पूर्वकरणाभिख्यं ततोऽनिवृत्तिसंज्ञकन् ।
सूक्ष्मलोभात्मकं तस्मादुपशान्त कषायकम् ॥२२॥ क्षीणमोहं सयोगाख्य मयोगिस्थानमन्तिमम् । एतानि गुणस्थानानि प्रभवन्ति चतुर्दश ॥ २३॥
मिथ्यात्व, सासादन, मिश्र, असंगत, देशविरत, प्रमत्तबिरत, अप्रमत्तविरत, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मलोभ, उपशान्तकषाय, क्षीणमोह, सयोगकेबलि और प्रयोगकेवलि ये चौदह गुणस्थान होते हैं ।
ऐतेस्त्यक्ताः प्रजायन्ते सिद्धा लोकोत्तमोत्तमाः । स्वशुद्धात्मसुखानन्द रसास्वादनतत्पराः ॥२४॥