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१८ वृक्ष होता है, किन्तु वृक्ष नीम होता भी है और नहीं भी होता है।
इति हेतोर्न वक्तव्यं सादृश्यं मांसधान्ययोः ।
मांसं निन्धं न धान्यं स्यात्प्रसिद्ध यं श्र तिर्जन ॥६७॥ ... इस हेतु से मांस और धान्य की समानता नहीं कहना चाहिए । लोगों में यह श्रुति प्रसिद्ध है कि मांस निन्द्य है, धान्य नहीं ।
उक्त च-कहा भी है--
प्रागीपालादि यत्सिद्ध मांसं धान्यं पृथक-पृथक ।
धान्य मानय इत्युक्त न कश्चिन्मांसमानयेत् ॥१॥
आबाल वृद्ध में यह प्रसिद्ध है कि माँस और धान्य दोनों अलग-अलग हैं । धान्य लामो ऐसा कहने पर कोई मांस नहीं लाता है।
इत्याधनेकधा शास्त्रां यत्कृतं दुष्टचेतसः ।।
तदंगीकृत्य जायंते जना दुर्गतिभाजनम् ॥६॥ इत्यादि अनेक प्रकार से दुष्ट चित्त वालों ने जो शास्त्रों की रचना की है, उसे स्वीकार कर प्राणी दुर्गति के पात्र हो जाते हैं।
तत्ताव प्राणिधातेन साधितं मांसभक्षणात् ।
पापं सम्पद्यते यस्माद्दुः खं श्वाभ्रं तदुच्यते ॥६६॥ मांस भक्षण के कारण प्राणिघात से पाप होता है, ऐसा कहा है । उस पाप से दुःख होता है, उसे नारकीय (दुःख) कहते हैं।