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खरशकर माजरि श्वानवानर गोमुखाः। वृत्तास्तिस्राश्यतु कोणा दुःस्पर्शा वज्र सन्निमाः ॥७॥ घंटाकारा अधोववत्रा दुर्गन्धास्तमसावताः। श्वभ्रषु पापजीवाना मुत्पत्यै सन्ति योनयः ॥७१॥
पापी जीवों की उत्पत्ति के लिए नरक में गधा, शूकर, बिल्ली, कुत्ता, बन्दर, घड़ियाल अथवा नक्र गोल, तिकोने, चौकोर, बुरे स्पर्श वाले, वज्र के समान, घंटाकार, नीचे, की ओर मुख वाले, दुर्गन्धित, अन्धकार से प्रावृत योनियाँ होती हैं।
तीव्र मिथ्यात्व संयुक्ताः प्राणिघातन तत्पराः। .
करा दुश्चेष्टिता जीवा उत्पधन्तेऽत्र योनिषु ॥७२॥ . इन योनियों में तीव्र मिथ्यात्व से संयुक्त, प्राणियों का घात करने में तत्पर, क्रू र तथा दुष्ट चेष्टाओं वाले जीव उत्पन्न होते हैं।
अन्तर्मुहूर्तकालेन पर्याप्ती समवाप्य षट् ।
ततः पतन्ति शस्त्राग्रे स्वयमेवोत्पतन्ति च ॥७३॥ वे अन्तर्मुहूर्त काल में छः प्रकार की पर्याप्तियों को प्राप्त कर शस्त्र के आगे गिरते हैं और स्वयं उछलते हैं ।
असुरा प्रातृतीयान्तं योधयन्ति परस्परम् ।
प्रयुध्यन्ते स्वयं ते ऽपि' ज्ञात्वा वरं पुरातनम् ॥७४॥ तीसरी पृथ्वी तक असुर कुमार जाति के देव उन्हें लड़ाते हैं और वे स्वयं भी पुराना वैर जानकर युद्ध करते हैं ।
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च. ख.।