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इस संसार में तीर्थों के जल में स्नान करने से कैसे मुक्त हो जायेंगे।
उक्त च गीतायां'गीता में कहा हैअरण्ये निर्जले क्षेत्र अशुचिबाह मणःमृतः। वेदवेदांगतत्त्वज्ञः कां गीत स गमिष्यति ॥१॥ यद्यसौ नरकं याति वेदाः सर्वे निरर्थकाः । यदि चेत्स्वर्गमाप्नोति जलशौचं निरर्थकं ॥२॥
वेद और वेदाङ्ग के तत्त्व को जानने वाला अशुचि ब्राह्मण वन में जलहीन क्षेत्र में मरा । वह मरकर किस गति को जायगा ? यदि वह नरक में जाता है तो समस्त वेद निरर्थक हैं । यदि वह स्वर्ग को पाता है तो जल में पवित्र होना निरर्थक
इन्द्रियविषयासक्ताः कषाय रंजिताशयाः।
न तेषां स्नानतः शुद्धिगृहिव्यापारवर्तिनाम् ॥३७॥ गृहकार्य में लगे हुए, इन्द्रिय के विषयों में आसक्त तथा कषायों से रंजित हृदय वालों की स्नान से शुद्धि नहीं हो सकती।
तीर्थाम्बुस्नानतः शुद्धि ये मन्यन्ते जडाशयाः ।
परिभ्रमन्ति संसारे नानायोनिसमाकुले ॥३८॥
जो जड़बुद्धि तीर्थों के जल में स्नान करने से शुद्धि मानते हैं, वे नाना योनियों से व्याप्त संसार में भ्रमण करते हैं। १ अस्याग्रे "श्लोको" इति-ख-पाठः। २ अथ स्वर्गमवाप्नोति ख.।