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क्षायोपशमिक भाव के अठारह भेद होते हैं-तीन प्रकार का दर्शन ( चक्षु दर्शन, प्रचक्षु दर्शन तथा प्रवधि दर्शन ), चार प्रकार का ज्ञान (मति, श्रुत, अवधि, मनः पर्यय) क्षयोपशम सम्यक्त्व, तीन प्रकार का प्रज्ञान ( कुमति, कुश्रुत तथा कुवधि), क्षायोपशमिक दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य, सरागचारित्र और संयमा संयम ये क्षायोपशमिक भाव के अठारह भेद हैं ।
चतस्रो गतयो वामं त्रयो वेदास्त्व संयमः । श्या षट्कमसिद्धत्वं चत्वारश्च कषायकाः ॥ १५ ॥
प्रज्ञानत्वेन संयुक्ताः प्रभेदा एकविशंतिः । afrat भावस्य निर्दिष्टा भाववेदिभिः ॥ १६॥
चार गतियाँ, मिथ्यादर्शन, तीन वेद, असंयम, छः प्रकार की लेश्यायें प्रसिद्धत्व, चार प्रकार की कषायें तथा अज्ञान ये सब मिलकर २१ भेद भावों को जानने वालों ने प्रदयिक भाव के निर्दिष्ट किए हैं ।
भव्यत्वं च भव्यत्वं जीवत्वं च त्रयः स्मृताः । पारिणामिक भावस्य भेदा गणधरैः स्फुटम् ॥ १७॥
भव्यत्व और भव्यस्व तथा जीवत्व ये तीन भेद पारिणामिक भाव के गणधरों ने स्पष्ट रूप से कहे हैं ।
मिथ्यादित्रिषु मिश्रा धास्त्रयों हयसंयतादिषु । चतुर्षु चोपशांतेषु चतुर्षु निखिला पृथक् ॥१८॥
१ मिथ्यादर्शनं । २ मिश्रौयिक परिणामिकाः ।