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आभार प्रदर्शन
सन्मार्ग दिवाकर प्रात: स्मरणीय आचार्य श्री १०८ विमल सागरजी महाराज की ७५वीं जन्म जयन्ती पर पूज्य श्री १०८ उपाध्याय भरतसागरजी महाराज एवं आर्यिका रत्न स्याद्वादमती माताजी प्रभृति साधु एवं साध्वी समुदाय की प्रेरणा से समाज के कर्मठ कार्यकर्ताओं ने जिनवाणी को प्रकाश में लाने हेतु प्राचीन आचार्यो और लेखकों के ७५ ग्रन्थ प्रकाशित करने का दृढ़ संकल्प किया । तदनुसार ज्योतिषाचार्य ब्र. धर्मचन्द्र शास्त्री मेरे पास भाव संग्रह की मूल प्रति लेकर आए और उसका हिन्दी अनुवाद करने की प्रेरणा की। उनसे प्रेरित होकर मैंने अनुवाद प्रारम्भ किया।
पूज्य उपाध्याय श्री १०८ भरत सागरजी महाराज तथा आर्यिका स्याद्वदमती माताजी ने इसे आद्योपान्त देखकर आवश्यक संशोधन करने की कृपा की तथा उन्हीं की प्रेरणा से यह ग्रन्थ सानुवाद प्रकाश में आ रहा है । एतदर्थ मैं पूज्य आचार्य श्री विमल सागरजी महाराज तथा समस्त साधु समुदाय का आभारी हूँ। इस प्रकार के सुन्दर कार्यों के संयोजन के लिए धर्मचन्दजी एवं ब्रह्मचारिणी प्रभा पाटनी को बधाई देता हूँ। प्रतिलिपी करने में मदद करने हेतु अनुज सुरेन्द्रकुमार जैन ने मदद की उन्हें शुभाशीर्वाद । जैन जयतु शासनम् ।
-डा. रमेश चन्द जैन
बिजनौर