Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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बौद्ध विनय की दृष्टि में
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आदर्श दुःखों से छुटकारा (निर्वाण) पाना है। उसे साध्य मानकर जब व्यक्ति स्वयं साधन के रूप में जीता है तो उससे सम्बन्धित समग्र समष्टि-व्यष्टि का समवाय उस साध्य का साधन बन जाता है । इस प्रकार व्यक्ति और संघ दोनों निर्वाण के साधन के रूप में एक ही जैसे हैं और परस्पर एक दूसरे के पूरक हैं । संघ का स्वरूप
विनय के अनुसार संघ से तात्पर्य चार अथवा उससे अधिक उपसम्पन्न व्यक्तियों के समूह से है। एक से तीन संख्या तक व्यक्ति हैं, चार से कम व्यक्तियों का संघ नहीं बनता । व्यक्ति के जीवन में बहुत कुछ कार्य संघ या 'पर' की अपेक्षा से सम्पन्न होता है, इसलिए व्यक्ति को समाज की अपेक्षा होती है। जैसे-यदि किसी उपसम्पन्न भिक्षु को 'संघशेष' जैसा दोष लगे तो उसके प्रायश्चित के लिए संघ की अनिवार्यतः आवश्यकता होती है। इसी तरह श्रामणेर की उपसम्पदा संघ के बिना सम्भव नहीं है।
व्यक्ति संघ से आबद्ध है। फिर भी वह संघ से अपना पृथक् अस्तित्व रखता है । संघ-कर्म के अतिरिक्त वह जो व्यक्तिगत कार्य करता है, उसका संघ उत्तरदायी नहीं होता और न उसका प्रभाव ही संघ पर पड़ता है। किन्तु व्यक्ति के बहुत सारे कार्य ऐसे हैं, जिनका प्रभाव संघ पर सीधा पड़ता है। जैसे उसके शील (आचरण) की पवित्रता, ज्ञान की विशालता आदि का। इसके विपरीत कुछ बुरे कर्मों का जैसे एक 'संघ-स्थविर' अदत्तादानादि-सम्बन्धी दोष से लिप्त हो तो उसका प्रभाव सारे संघ पर पड़े बिना न रहेगा।
संघ ऐसे व्यक्तियों का समूह है, जो एक व्यवस्था से बँधे हुए होते हैं । विनय के अनुसार संघ केवल उपसम्पन्न व्यक्तियों का ही होता है, तथापि संघ शब्द का व्यवहार उपसम्पन्न व्यक्तियों के अतिरिक्त अन्य समूहों जैसे-उपासक संघ, श्रामणेर संघ आदि के लिए भी होता है। संघ का गठन कुछ आवश्यक तत्त्वों पर निर्भर है, जैसे संघ के घटक व्यक्तियों के बीच समान आदर्श का होना, उनका समानधर्मी होना तथा इन सबके मूल में एक समान 'गण' अथवा मण्डल की भावना से प्रेरित होना आदि। इसीलिए जब कभी संघ-कर्म का प्रारम्भ किया जाता है तो संघ के सभी घटक एकत्र होकर एक सीमा के भीतर समान गण में एकमत होने का प्रस्ताव करते हैं और उसके पारित होने के बाद ही संघ अपने विधान के अनुकूल कार्य करने का अधिकारी
होता है। इस तरह संघ एक भावना, एक आदर्श और समान आचार के आधार . पर बनता है।
परिसंवाद-२
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