Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

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Page 333
________________ ३०८ भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं अर्धाङ्गिनी' कहा गया है, तो दूसरी ओर उसे पति का विश्वासपात्र मन्त्री, मित्र एवं प्रिय शिष्या बताया गया है। __ पत्नी के बिना घर को शून्य एवं जंगल बताया गया है। मनु ने तो यहाँ तक कह डाला है कि जहाँ पर स्त्रियों की पूजा होती है वहीं पर देवता निवास करते हैं।" इसीलिए महापुराण में कहा गया है कि पति पत्नी से सुशोभित होता है । जैनाचार्यों ने वेश्याओं को सामाजिक धारा से जोड़ने का प्रयास किया है। समाज में वेश्याओं को हीनदृष्टि से देखा जाता था, परन्तु समाज ने सुधार करके इनकी स्थिति में परिवर्तन किया। इस परिवर्तन के परिणामस्वरूप वसन्त सेना नामक वेश्या ने अपना पेशा छोड़कर विवाह किया और अपनी माँ के घर से पति के यहाँ आकर अपनी सास की सेवा करते हुए अणुव्रतों का पालन करने लगी। वेश्यायें विवाह करके गृहस्थी बसाने लगीं और सामाजिक धारा में योगदान देने लगीं । वेश्याओं के साथ विवाह करने पर किसी को समाज से बहिष्कृत नहीं किया जाता था। इससे यह ज्ञात होता है कि जैनाचार्यों ने वेश्याओं की स्थिति सुधारने और उन्हें समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाने तथा उनके साथ विवाह करने को प्रोत्साहन दिया। जिस प्रकार आजकल हरिजन कन्या के साथ विवाह करने पर सरकार की ओर से विभिन्न प्रकार का प्रोत्साहन दिया जाता है, सम्भवतः उस समय भी वेश्याओं के साथ विवाह करने पर इसी तरह का कोई प्रोत्साहन दिया जाता होगा। जैनाचार्यों ने समाज में आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए समानता को स्थापित करने का प्रयास किया है । जैन पुराणों के अनुशीलन से यह तथ्य प्रकाश में आता है कि उस समय सभी को न्याय पूर्वक आजीविका करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाता था। जिनसेनाचार्य ने कहा है कि इस संसार में मनुष्य की इच्छाएँ अनन्त हैं और उन इच्छाओं की पूर्ति के साधन अत्यल्प हैं। अतएव समस्त इच्छाओं १. तैत्तिरीयसंहिता ६.१.८.५, ऐतरेय ब्राह्मण १.२.५, शतपथब्राह्मण ५.२.१.१० । २. गृहिणी सचिवः सखी मित्रः प्रिय शिष्या ललिते कलाविधौ-रघुवंश ८.८७ । ३. महाभारत १२.१४४.४ । ४. वही, १२.१४४.६ । यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।। यत्रतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।। मनुस्मृति ३.५६ । तुलनीयजामयो यत्र पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः । यत्रतास्तु न पूज्यन्ते विनंक्ष्यत्याशु तद्गृहम् ॥ भविष्यपुराण ४.११७.४ । ६. महापुराण ६.५९ । ७. हरिवंशपुराण २१.१७६ । परिसंवाद-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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