Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 372
________________ सामाजिक समता सम्बन्धी संगोष्ठी का विवरण आज के युग में समता के मूल्य पर बहुत जोर दिया जाता है तथा कहा जाता है कि यह मूल्य पाश्चात्य विचारों की देन के रूप में भारत में आया है। संस्कृतविश्वविद्यालय, वाराणसी परम्परावादी शास्त्रों के अध्ययन का केन्द्र है । यहाँ शास्त्रों का अध्ययन संस्कृत के माध्यम से चलता है। शास्त्रों में समता के मूल्यों की प्रभूत चर्चा है, इसको आधुनिक भारत के लोगों को बताना तथा इसकी समाज में प्रतिष्ठा कैसे हो ? इसके लिए प्रयत्न करना, आज की प्रमुख समस्या है। संस्कृतविश्वविद्यालय में आधुनिक विचारों के तुलनात्मक अध्ययन के लिए स्थापित तुलनात्मक दर्शन विभाग द्वारा आयोजित संगोष्ठी में समता के मूल्य पर भारतीय दर्शनों की दृष्टि से विचार किया गया। यह संगोष्ठी २८, २९ तथा ३० अप्रैल १९७८ को सम्पन्न हुई। जिसमें मानव जीवन से सम्बन्धित समस्याओं पर विचार करते हुए संगोष्ठी के अध्यक्ष प्रो० रमाकान्त त्रिपाठी (अध्यक्ष-दर्शनविभाग का० हि० वि० वि० वाराणसी) ने कहा ___ मानव जीवन की प्रमुख दो समस्यायें हैं (१) न्यायप्राप्ति तथा (२) सामाजिक पंक्तिभेद को मिटाना। इसके लिए भारतीय परम्परा में बहुत पुष्ट चिन्तन प्रस्तुत हुए हैं। भारतीय समाज में प्राचीनकाल में ब्राह्मण त्यागमय जीवन चलाता था, अतएव जो त्यागी थे, ज्ञानी थे, वे ब्राह्मण कहलाये । इसी प्रकार देश के रक्षक क्षत्रिय, कृषि उत्पादक वैश्य तथा सेवा को सम्पन्न करने वाले शूद्र। यह कर्म पर आधारित पुष्ट व्यवस्था थी, फलतः आज तक यह वर्तमान है। भारतीय जीवन दर्शन का मुख्य उद्देश्य मुक्ति को प्राप्त करना रहा है। यहाँ पाश्चात्य दर्शन की भाँति जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में दार्शनिक विश्लेषण नहीं प्रस्तुत हुआ है। आज के औद्योगीकरण के युग में भारतीय दर्शन की दृष्टि से सभी क्षेत्रों में विचार आवश्यक है। इस संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए सुप्रसिद्ध समाजशास्त्री तथा काशीविद्यापीठ के कुलपति प्रो० राजारामशास्त्री ने कहा-समाज में सभी मनुष्यों में न्यूनाधिक समानता होती है जैसे शारीरिक, भावगत तथा बौद्धिक समानता आदि। मनुष्य अकेलापन में कभी रहना नहीं चाहता । आत्मसम्मान एवं परसम्मान की भावना से मनुष्य में समानता आती है। राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक विकासक्रम की चर्चा करते हुए आपने कहा कि मनुष्य आर्थिकविकास के कारण ही उन्नति प्राप्त परिसंवाद-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386