Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

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Page 374
________________ सामाजिक समत: सम्बन्धी संगोष्ठी का विवरण ३४९ नियन्त्रित करना चाहता है और किसी भी रूप में विभिन्नता एवं विशिष्टता को समाप्त करने के पक्ष में नहीं है। किन्तु समानता लाने के लिए यह आवश्यक है कि मनुष्य की विशिष्टता एवं विभिन्नता का उपयोग समुदाय के हित के लिए किया जाय । आप ने आचार्य नरेन्द्रदेव के विचारों की चर्चा करते हुए कहा कि आचार्य जी की दृष्टि में मनुष्यता ही समाजवाद का आधार है। इसी सन्दर्भ में आपने समता की स्थापना में महात्मा गांधी एवं महामना मालवीय जी के कार्यों एवं विचारों का भी उल्लेख किया और बताया कि ये महानुभाव भारतीय संस्कृति के प्रतीक थे, उनका सबके साथ निष्पक्ष एवं आत्मवत् व्यवहार ही समाज में समता की स्थापना का संकेत देता है। इस त्रिदिवसीय गोष्ठी में काशी के तीनों विश्वविद्यालयों के प्राध्यापक, नगर के मान्य परम्परागत विद्वान् तथा संस्कृत एवं संस्कृति प्रेमी जनता उपस्थित रही। गोष्ठी की समाप्ति पर धन्यवाद देते हुए पालिविभाग के अध्यक्ष प्रो० जगन्नाथ उपाध्याय ने कहा-प्रकृतिप्रदत्त गुण ही समाज में विकसित होते हैं। शास्त्रों में समता के मूल्य अवश्य हैं पर उनका ठीक से अन्वेषण होना चाहिये। आज के युग में अतीत एवं अनागत समता को पृथक् न देखकर दोनों के सातत्य में रास्ता खोजने पर बल देना चाहिए। दार्शनिकों को मर्यादित समता के विचार का चिन्तन करना चाहिए तथा सम्पूर्ण भारतीयवाङ्मय से इसके सूत्र खोजकर नवीन राष्ट्र के निर्माण में सहयोग करना चाहिए। इस सन्दर्भ में इस पर न केवल दर्शनों की दृष्टि से ही अपितु पुराणों, तन्त्रों तथा बौद्ध एवं जैन आगमों की दृष्टि से भी विचार विन्दु खोजना चाहिए, जिससे वर्तमान समाज के लिए समता का मूल्य स्वाभाविक बन सके । गोष्ठी में उपस्थित विद्वानों में मुख्य थे, प्रो० रमाशंकर मिश्र, प्रो० रमाकान्त त्रिपाठी, डॉ० रेवतीरमण पाण्डेय, डॉ० कमलाकर मिश्र, डॉ० हर्षनारायण आदि (काशी हिन्दूविश्वविद्यालय) प्रो० राजाराम शास्त्री, प्रो० कृष्णनाथ, प्रो० रमेशचन्द्र तिवारी, डॉ० रघुनाथ गिरि आदि (काशी विद्यापीठ) प्रो० एस० रिन्पोछे, श्री सेम्पादोर्जे तथा गेशे त्रिशेस थवख्यस (तिब्बती संस्थान, सारनाथ) प्रो० रामशंकर त्रिपाठी, डा० गोकुलचन्द्र जैन, डा० ब्रह्मदेवनारायण शर्मा, श्री सुधाकर दीक्षित एवं श्री राधेश्याम धर द्विवेदी आदि (संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी) काशी के विशिष्ट विद्वानों में पं० केदारनाथ ओझा, डॉ० रामशंकर भट्टाचार्य एवं पं० केदारनाथ त्रिपाठी, पं० हेब्बार शास्त्री आदि उपस्थित थे। .... उपस्थित विद्वानों से समतासूत्र को शास्त्रों से निकालने पर बल देते हुए प्रो० जगन्नाथ उपाध्याय ने कहा कि इस विषय पर शीघ्र ही एक बड़ी संगोष्ठी आयोजित परिसंवाद-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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