Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

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Page 348
________________ ३२३ और जब वे प्रकृति से संयुक्त होते हैं तब उनमें जिन गुणों का विकास होता है, वे परस्पराश्रित हैं और इन्हीं गुणों के तारतम्य से सारी सृष्टि का विकास होता है जिसमें सामाजिक विकास भी सम्मिलित है । अद्वैतवादी दर्शन यद्यपि पारमार्थिक रूप में सभी व्यक्तियों का आश्रय एक ही सत्ता को मानते हैं किन्तु व्यवहार में कम से कम शाङ्करअद्वैत तो सांख्य की प्रक्रिया को ही स्वीकार करता है । इस प्रश्न पर दार्शनिक विचार के लिए यह मूलभूत तथ्य केवल उदाहरण के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है । विद्वान दार्शनिक अनेक दर्शनों के साथ इन आदर्शों की संगति और असंगति का विवेचन करेंगे और उससे इस बात का अन्वेषण करेंगे कि कौन सा दर्शन या किस दर्शन का कोन सा सिद्धान्त इनका मण्डन करता है या खण्डन करता है । हो सकता है कि इस दृष्टि से विचार करने पर कोई भी एक दर्शन पूर्ण रूप से सहायक सिद्ध न हो, और अनेक दर्शनों से सामग्री एकत्र करके एक नये दर्शन का ही निर्माण करना पड़े । अधिक सम्भव यह है कि इस प्रकार एक पूर्ण दर्शन का निर्माण न हो सके, क्योंकि किसी भी दर्शन के लिये केवल इसी एक प्रश्न का समाधान करना पर्याप्त नहीं होता, उसके अनेक अंग होते हैं। ऐसी स्थिति में इस विषय पर विचार करने से जो उपलब्धि होगी, वह यह होगी कि इस प्रश्न के समाधान के लिए जो दार्शनिक विचार उपयुक्त पाये जायेंगे, उनका एक समुच्चय स्थिर हो जायेगा और आगे आने वाले दर्शन का एक अंग उससे प्रस्तुत हो जायेगा और जो भी सर्वांगीण दर्शन बनेगा, उसे इस विचार समुच्चय को ग्रहण करना होगा और अपने अन्य अंगों को इसकी सङ्गति में ही विकसित करना होगा | यह काम कोई कम महत्त्व का नहीं है और इससे दार्शनिक विकास की धारा में एक महत्त्वपूर्ण योगदान होगा । मानव-समता Jain Education International For Private & Personal Use Only परिसंवाद - २ www.jainelibrary.org

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