Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

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Page 332
________________ जैन-पुराणों में समता ३०७ ... उस समय कन्याओं का जन्म माता-पिता के लिए अभिशाप था, परन्तु जैन पुराणों में सामाजिक समता के आधार पर उनको ऊपर उठाया गया है । इस कारण उन्होंने (जिनसेन ने) व्यवस्था की है कि कन्याओं का जन्म प्रीति का कारण होता है।' इसी प्रकार का विचार कालिदास ने भी व्यक्त किया है। उन्होंने अपने ग्रन्थ कुमारसम्भव में कन्या को कुल का प्राण कहा है । जैनाचार्यों ने पुत्र एवं पुत्री को समान माना है। इसीलिए पिता दोनों को समान रूप से पढ़ाते थे। उस समय बिना भेद-भाव के लड़के और लड़कियाँ साथ-साथ अध्ययन किया करते थे। जैनाचार्य जिनसेन ने लड़कों के समान लड़कियों को भी समस्त विद्याओं एवं कलाओं की शिक्षा देने की व्यवस्था की है। जिनसेन ने पिता की सम्पत्ति में पुत्री को बराबर भाग का अधिकारी बताया है। स्त्रियों को समाज में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था और उनके साथ समता का व्यवहार होता था। जैनाचार्य स्त्रियों के साथ दुर्व्यवहार की कटु आलोचना करते थे। इसीलिए स्त्रियों को भी पुरुष के समान स्वर्ग का अधिकार दिया है। . जैनाचार्यों ने परिवार में पति-पत्नी में परस्पर समानता के आधार पर सौहार्दता स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। जीवनरूपी नौका पतिपत्नी के सहयोग से चलती है। किसी को कम या अधिक समझने पर जीवन-नौका भँवर में पड़कर दुर्गति को प्राप्त होती है । इसीलिए हमारे मनीषियों ने दोनों में समानता स्थापित करने का प्रयास किया है । पद्मपुराण में कहा गया है कि स्त्री पुरुष का जोड़ा साथ ही साथ उत्पन्न होता था और आयु व्यतीत करके प्रेम-बन्धन में आबद्ध रहते हुए साथ ही साथ मृत्यु को प्राप्त करते थे। एक ओर पत्नी को पति की १. महापुराण ६, ८३ । २. भगवतशरण उपाध्याय-गुप्तकाल का सांस्कृतिक इतिहास, वाराणसी १९६९, पृ० २२१ । ३. महापुराण २६, ११८ ४. पद्मपुराण २६, ५-६, तुलनीय-बृहदारण्यकोपनिषद् ६, २, १, छान्दोग्योपनिषद् ५, ३ । ५. महापुराण १६, १०२ । ६. पुश्यश्च संविभागार्हाः समं पुत्रः समांशकैः । महापुराण १८.१५४ । तुलनीय-कात्यायन ९२१.२७, आवश्यकचूर्णी २३२, उत्तराध्ययन २, पृ० ८९ ७. हरिवंशपुराण १९.१६, पद्मपुराण १५.१७३ । ८. पद्मपुराण ८०.१४७, महापुराण १७.१६९ । युग्ममुत्पद्यते तत्र पल्यानां त्रयमायुषा । प्रेमबन्धनबद्धश्च म्रियते युगलं समम् ॥ पद्मपुराण ३.५१।। परिसंवाद-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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