Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

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Page 338
________________ समता के आयाम तथ्य नहीं है। तथ्य यह है कि मनुष्य असमान स्थितियों में जनमते हैं। किसिमकिसिम की बाह्य-आन्तरिक विषमता मानव गोष्ठी का तथ्य है । विषमता के बीच समता का आदर्श इन दिनों बहत प्रबल है। यहाँ तक कि विषमता के पक्षधर भी अब खले आम विषमता का पक्ष नहीं लेते। जहाँ कहीं उसकी जरूरत बताते हैं वहाँ भी विवशता के रूप में ही। मूल्य के रूप में तो समता ही प्रतिष्ठित है। फिर भी, विषमता के तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता। स्त्री-पुरुष, अगड़ी-पिछड़ी जाति, काले-गोरे, अमीर-गरीब, शासक-शासित वगैरह के जोड़ों में जो द्वन्द्व है, जो अनेकता है, जो विषमता है उससे आँख मूंदना बचना है। तो प्रश्न है कि इस विषमता के प्रति रुख क्या हो ? तीन रुख हो सकता है। १-विषमता के तथ्य को सकार कर उसके अनुकूल व्यक्तिगत और सामाजिक आचरण किया जाए। व्यक्ति और समाज का इन भेदों के आधार पर संयोजन हो। अलबत्ता उसमें भी उन सभी संयोजनों को पार कर चरम अवस्था में एक अखण्ड अभेद में लीन होने की या मोक्ष की गुंजाइश रहे। २–बाह्य विषमता को अपने देह-चित्त में उतार कर अपने अन्दर ही उनमें समता साधी जाए । और ३-विषमता के विरुद्ध अन्दर-बाहर संघर्ष किया जाए। आज की दुनिया में हवा का रुख विषमता के विरुद्ध है, समता की ओर है। समता कोरा आदर्श नहीं है। इसके पीछे जबर्दस्त राजनीतिक-सामाजिक आन्दोलन है । समता की भूख जग गयी है। किसिम किसिम की विषमता को यह खा रही है। किन्तु विषमता भी एक रूप को छोड़ दूसरे रूप में प्रगट हो रही है । सामन्ती अलगाव की जगह आधुनिक समाजवादी या उदारवादी अलगाव और दूरी और शुद्ध-अशुद्ध का व्यवहार हो रहा है। जैसे प्राचीन वर्ण-व्यवस्था की जगह कर्मचारी तन्त्र के चार 'ग्रेड' ले रहे हैं । फिर भी, झुकाव समता की ओर है, विषमता के विरुद्ध है। समता को सम्पन्नता के साथ भी जोड़ा जा रहा है। प्राचीन और मध्यकालीन साधन में विषमता के बीच जीने का रास्ता था कि भोग-विलास से अपने को अलग कर लो। गरीबी अपनाओ । समता का अन्दर-बाहर अभ्यास करो। पश्चिमी काल के समाजवादी चिन्तकों ने आधुनिक काल में एशिया, अफ्रीका, और लैटिन अमेरिका के महाद्वीपों और देशों में शोषण-दोहन और विज्ञान और टेक्नालाजी के आविष्कारों वगैरह का लाभ सोचकर सम्पन्नता के जरिए समता और समता के जरिए सम्पन्नता का मन्त्र सुझाया है। पूर्वी यूरोपीय देशों में विशेष कर, सोवियत संघ में यह फैला भी है। किन्तु क्या एशिया; अफ्रीका और लैटिन अमरीका में भी सम्पन्नता के जरिए परिसंवाद-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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