Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं इसी के आगे लिखते हैं
ब्राह्मण एव तन्मुखाज्जायत, तन्मुखादेवासौ जायेत ? विकल्पद्वयेऽप्यन्योन्याश्रयः।
अर्थात् ब्राह्मण ही ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न होता है अथवा उसके मुख से ही ब्राह्मण उत्पन्न होता है-इन दोनों ही विकल्यों के स्वीकार करने पर अन्योन्याश्रय दोष है। ब्राह्मण जाति सिद्ध हो तो ब्रह्मा के मुख से उसकी उत्पत्ति सिद्ध हो, और ब्रह्मा के मुख से ही ब्राह्मण जाति की उत्पत्ति सिद्ध हो तो ब्राह्मण जाति की उत्पत्ति सिद्ध हो।
इसके लिखने के उपरान्त लिखा है कि केवल आचार-विचार के आधार पर जाति या वर्ण की व्यवस्था की जानी चाहिए।
इस तरह प्राचीन जैन आगम, पुराण तथा जैन दर्शन में मानवीय समता के पर्याप्त स्वर उपलब्ध हैं।
परिसंवाद-२
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