Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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जैनवाङ्मय में समता के स्तर जैनदर्शन के प्रमुख ग्रन्थ हैं। इनमें वर्णव्यवस्था तथा जाति के अनुकूल या प्रतिकूल कोई विशिष्ट चर्चा नहीं की गयी है।
तत्त्वार्थसूत्र के २०वें स्पर्शरसवर्ण सूत्र में 'वर्ण' शब्द आया है और इसी तरह स्पर्शरसगन्धवर्ण (५.२३) सूत्र में भी। पर ये दोनों शब्द यहाँ रंग के अर्थ में हैं, न कि ब्राह्मण आदि वर्गों के अर्थ में । आठवें अध्याय में गतिजाति (सूत्र १०) में जाति शब्द आया है। यहाँ 'जाति' शब्द ब्राह्मण आदि जातियों के अर्थ में नहीं है, एक विशिष्ट कर्म के अर्थ में है। यहाँ जाति के पाँच भेद बतलाये हैं-एकेन्द्रियजाति, द्वीन्द्रियजाति, त्रीन्द्रियजाति, चतुरिन्द्रियजाति और पञ्चेन्द्रिय जाति।
__ तीसरे अध्याय में 'आर्या म्लेच्छाश्च' (सूत्र नं० ३६) लिखा हुआ है। इस सूत्र से तथा इसकी दिगम्बर या श्वेताम्बर आचार्यों की टीकाओं से इतना ही ज्ञात होता है कि मनुष्य दो प्रकार के होते हैं-आर्य और म्लेच्छ । जो गुणी हैं और गुणियों के द्वारा समादृत हैं, वे आर्य कहलाते हैं। इनसे जो विपरीत हैं वे म्लेच्छ । निष्कर्ष यह कि यह भेद गणकृत है, वर्ण या जातिकृत नहीं। टीकाकारों ने जिन्हें म्लेच्छ कहा है वे इस आर्यखण्ड में नहीं पाये जाते, कुभोगभमियों में पाये जाते हैं। फलतः तत्त्वार्थसूत्र का यह सूत्र वर्ण या जाति के आधार पर मानवीय विषमता का समर्थन नहीं करता, यह स्पष्ट है।
राजा भोज के समकालीन प्रबल शास्त्रार्थी आचार्य प्रभाचन्द्र ने अपने 'प्रमेयकमलमार्तण्डः' ग्रन्थ में पृष्ठ ४८३ से ४८७ तक और 'न्यायकुमुदचन्द्रः' में पृष्ठ ७७८ से ७७९ तक ब्राह्मणत्वजाति की समालोचना की है । प्रमेयकमलमार्तण्ड के पृष्ठ ४८४ पर लिखा है--
ब्रह्मणो ब्राह्मण्यमस्ति वा नवा ? नास्ति चेत् कथमतो ब्राह्मणोत्पत्तिः ? न ह्यमनुष्यादिभ्यो मनुष्याद्युत्पत्तिर्घटते । अस्ति चेत्, किं सर्वत्र, मुखप्रदेश एव वा ? सर्वत्र इति चेत्, स एव भेदाभावोऽनुषज्यते । मुख प्रदेश एव चेत्, अन्यत्र प्रदेशे तस्य शूद्रत्वानुषङ्गः, तथा च पादादयोऽस्य न वन्द्या वृषलादिवत् ।
अर्थात् ब्रह्मा में ब्राह्मणत्व है या नहीं ? नहीं है, तो इससे ब्राह्मणों की उत्पत्ति कैसे हुई ? क्योंकि अमनुष्य आदि से मनुष्य आदि की उत्पत्ति होना सिद्ध नहीं। यदि ब्रह्मा में ब्राह्मणत्व है, तो पूरे शरीर में या केवल मुख में ही। यदि पूरे शरीर में है, तो मानवों में ब्राह्मण आदि का भेद समाप्त होगा ऐसा प्रसङ्ग आएगा। यदि केवल मुख में ही ब्राह्मणत्व है, तो अन्य प्रदेशों में शूद्रत्व का प्रसङ्ग आता है। ऐसी स्थिति में ब्रह्मा के पैर आदि शूद्र की ही भाँति अबन्द्य ठहरते हैं।
परिसंवाद-२
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