Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं पर समाज की प्रगतिशील व्यवस्था बौद्ध धर्म में है। आज बहुत से देशों में बौद्धधर्म राष्ट्रीय-धर्म के रूप में विकसित है। अतः किसी धर्म के किसी देश में लोप हो जाने का कारण और कोई है, बौद्ध धर्म में स्थायी व्यवस्था का अभाव इसका कारण नहीं है।
बोधिचित्त, महाकरुणा तथा प्रतीत्यसमुत्पाद के आधार पर बौद्ध महायान की दृष्टि से समाज की सुव्यवस्था सैद्धान्तिक तथा प्रयोगात्मक दोनों रूप में बनती है। परन्तु चिन्ता इस बात की है कि आज तथाकथित महायानी समाज में भी महायानी परम्परा के विरुद्ध कुप्रथा तथा अनैतिकता का स्थान बढ़ रहा है। अन्धविश्वास भी इन समाजों में अपना प्रभाव दिखा रहा है। इनका कारण यह नहीं है कि महायान धर्म की कोई त्रुटि पूर्ण व्यवस्था है। अपितु उस व्यवस्था का ठीक से अनुकरण नहीं हो पाना तथा उसके विषय में पर्याप्त ज्ञान का अभाव, उसका कारण है।
संक्षिप्त में हम यह समझते हैं कि महायान की दृष्टि से व्यक्ति तथा समाज एक दूसरे पर आधारित हैं। व्यक्ति के गुण तथा अवगुणों से समाज में भी गुण तथा अवगुण आते हैं। बोधिचित्त तथा प्रतीत्यसमुत्पाद की पृष्ठभूमि में जाति तथा वर्ण रहित समाज की व्यवस्था बनती है। भ्रष्टाचार तथा शोषण से मुक्त समाज का निर्माण होता है । ऐहिक तथा पारलौकिक एवं संसार तथा निर्वाणगत समस्त क्षेत्र में सबको समान अधिकार प्राप्त हैं। इस दृष्टिकोण को यथावत् प्रयोग में लाना व्यक्ति का कर्तव्य है।
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