Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएँ विप्र के लिए शूद्र से यज्ञार्थ धन की भिक्षा माँगने का मनु ने निषेध किया है, बलप्रयोग द्वारा अथवा चोरी द्वारा धन हरण करने का नहीं। वस्तुतः यहाँ शूद्र को वैयक्तिक सम्पत्ति का अधिकार ही नहीं दिया गया है
__ भार्या, पुत्रश् च, दासश् च त्रय एवाधनाः स्मृताः।
यत् ते समधिगच्छन्ति यस्य ते तस्य तद् धनम् ॥' चंकि शूद्र का धन पर कोई अधिकार ही नहीं है अतः वह 'भर्तहार्यधन' कहा गया है। अर्थात् वह ऐसा व्यक्ति है जिसका धन उसका नहीं, उसके मालिक का धन है। अतः ब्राह्मण को अधिकार दिया गया है कि वह निःशङ्क होकर शूद्र से धन छीन लिया करे
विस्रब्धं ब्राह्मणः शूद्राद् द्रव्योपादानमाचरेत् ।
न हि तस्यास्ति किञ्चित् स्वं, भर्तहार्यधनो हि सः॥ ___ वैशेषिक-सूत्र में हीन, सम और विशिष्ट धार्मिक के परस्वादान की चर्चा आयी है-'एतेन होन-सम-विशिष्ट-धामिकेभ्यः पर स्वादानं व्याख्यातम्"। शङ्कर मिश्र ने वैशेषिकसूत्रोपस्कार में 'वृत्तिकार' के हवाले से लिखा है कि परस्वादान का अर्थ है चोरी आदि द्वारा पर-सम्पत्ति का ग्रहण (वृत्तिकाराम् तु परस्वादानं पर-स्वग्रहणं व्याख्यातम्)। इसके बाद वे श्रुति के हवाले से कहते है कि अपनी क्षुधा-पीड़ा की दशा में तथा कुटुम्ब की रक्षा के लिए सात दिन से भूखा रहने पर शूद्र का भोजन चुरा लेने में कोई दोष नहीं, दस दिन से भूखा रहने पर वैश्य का, पन्द्रह दिन से भखा रहने पर क्षत्रिय का और प्राण छूटने लगे तो ब्राह्मण का भोजन छीन लेने में कोई दोष नहीं—'तथा च श्रुति:-“शूद्रात् सप्तमे, वैश्याद् दशमे, क्षत्रियात् पञ्चदशे, ब्राह्मणात् प्राणसंशये" इति क्षुधापीडितमात्मानं कुटुम्ब वा रक्षितुं सप्तदिनान्याहारमप्राप्य शूद्रभक्ष्यापहारः कार्यः, एवं दशदिनान्याहारमप्राप्य वैश्यात्, पञ्चदश दिनान्याहारमप्राप्य क्षत्रियात्, प्राणसंशये ब्राह्मणाद् भैक्ष्यापहरणं न दोषायेत्याहः। वे आगे कहते हैं कि जो उक्त कार्य में बाधा डालें उनका यदि वध भी कर दिया जाय तो धर्म की हानि और अधर्म का प्रादुर्भाव नहीं होता-'न केवलं प्राणसंशये परस्वादानं न निषिद्धं, किन्तु तस्यां दशायामपहतु ये न प्रयच्छन्ति तेषां वधोऽपि कार्यो, न तावता धर्महानिरधर्मप्रादुर्भावो वा।" जैसा कि अगले सूत्र में भी कहा गया है, उक्त विशेषाधिकार के विरोधियों को मार डालना चाहिए (तथा विरुद्धानां त्यागः) ।' १. मनु० ११।२४ । २. मन्वर्थमुक्तावली ११।१३ । ३. मनु० ८१४१६ । ४. मनु० ८।४१७ । ५. वैशेषिक-सूत्र ६।१।१२। ६. वैशेषिकसूत्रोपस्कार ६।१।१२ । ७. तंत्रव ६।१।१२। ८. तत्रैव ६।१।१३। ९. वै० सू० ६।१११३ ।
परिसंवाद-२
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