Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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व्यष्टि एवं समष्टि के सन्दर्भ में ब्रह्मविहार, बोधिचित्त और ज्वलिता चण्डाली १४७ चैतसिक स्थिति व्यक्ति पर आधारित है । जब बौद्ध योगि का चित्त 'बहुजन के हित, बहुजन के सुख तथा देव और मनुष्यों के हित सुख के साथ ध्यान, समाधि, समापत्ति से संप्रयुक्त होकर लौकिक और लोकोत्तर भूमि में विराजमान रहता है, तब उनके सामने पुद्गल का नाम और रूप तथा सत्काय दृष्टि नहीं रहती है।
अविद्या से सत्काय दृष्टि का उद्भव है। पृथिव्यादि धातुओं के रूपान्तर लक्षणात् वह रूप है, और वेदनादि चैतसिक धर्मो के नमनलक्षणात् नाम हैं । इन नाम रूप से 'अहम्' भावना या 'अस्मिता' पैदा होती है। सिद्धाचार्यों में धम्मपाद, काण्हपाद और भुसुकपाद ने इसका नाम 'चण्डाली' कहा है। इस ‘अहम्' की भावना तथा 'अस्मिता' या ममत्व के बोध के कारण व्यक्ति अपने-अपने स्वार्थ-बुद्धि में बंधा रहता है । अपने-अपने विचार से बाहर निकलकर सामूहिक कल्याण एवं समाज का हित नहीं करता है। लेकिन, जो बौद्ध भिक्षु एवं उपासक साधनमार्ग में 'ब्रह्मविहार' की भावना से प्रबुद्ध हैं, वह व्यक्ति अपना सुख और स्वार्थ-बुद्धि भूल जाता है। उसके सामने न लौकिक स्वार्थ सिद्धि है, न लोकोत्तर स्वार्थ सिद्धि है। सदा ही समाज की सेवा में अपनी सिद्धि एवं उत्सर्ग करता है ।
भगवान् बुद्ध की 'सम्यग् दृष्टि' ही धर्माधिष्ठानात्मक सद्धर्म है। यह सम्यग् दृष्टि क्या है ?
(क) कम्मस्सकता सम्मादिट्ठि-सब्ब सत्ता कम्मसदा कम्मदायादो कम्मयोनी __ कम्मबन्धु । (ख) चतुसच्च सम्मादिट्ठि-दुःखादि चार आर्यसत्य सम्बन्धी दृा। (ग) दसवत्थुका सम्मादिट्ठि–दशवस्तु सम्बन्धी सम्यक्दृष्टि ।
प्रायशः कर्मस्वकीयता के कारण दश अकुशल कर्म व्यक्ति के अन्तराय के रूप में प्रकटित होते हैं। लेकिन गूढ़तया ये कर्म परोक्षेण समाज के कल्याण के आधार पर खड़े हैं। जैसे (१) प्राणातिपात, (२) अदत्तादान, (३) कामेषु मिथ्याचार, (४) मिथ्याभाषण, (५) पिशुनवाक्य, (६) परुषवचन, (७) निरर्थक आलाप, (८) अभिध्या (दूसरे के सामान के लिए लोभ), (९) व्यापाद (मानसिकी हिंसा), (१०) मिथ्यादृष्टि ।
यह अनुशासन व्यक्ति की चर्या के साथ ही समाज के लिये हितकारक है। 'सब्बे सत्ता कम्म परिसरणा' होने के कारण अपने-अपने कुशल और अकुशल कर्म ही सकल सत्त्वों को शील, समाधि, समापत्ति के सहायक हैं। जैसे बीमार होने पर भिषक् का शरण लेना पड़ता है, साथ ही साथ भैषज्य एवं सहायक भिषक् का शरण लेना पड़ता
परिसंवाद -२
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