Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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ध्यष्टि एवं समष्टि सम्बन्धी परिसंबाद-गोष्ठी का संक्षिप्त विवरण
२११ नहीं है, और न समाज की उपेक्षा है। नैरात्म्य पर आधारित समता, करुणा और सेवा की भावना द्वारा बौद्ध दर्शन व्यक्ति का ऐसा विकास चाहता है कि उसकी क्षमता का समाज के हित में पूर्ण उपयोग हो सके। समाजहित ही व्यक्ति का अपना हित बन जाता है। बौद्धों की बोधिसत्त्व की अवधारणा इस सम्बन्ध में आलोक प्रदान कर सकती है । बौद्ध दर्शन के अनुसार यद्यपि व्यक्ति और समाज दोनों की स्वाभाविक सत्ता नहीं है, किन्तु व्यवहार में दोनों का महत्त्व है। व्यक्तित्व के विकास में निश्चित रूप से समाज का योगदान है, अतः बौद्धों की दृष्टि में व्यक्ति का ऐसा विकास होना चाहिए कि उसकी आत्मदृष्टि पूर्णरूप से विगलित हो जाय तथा समाज सेवा और समाज कल्याण उसका एकमात्र कर्तव्य हो जाय । बौद्धों ने इस दिशा में पर्याप्त चिन्तन किया है। विद्वानों की राय में इस प्रकार की गोष्ठियों द्वारा बौद्धों के चिन्तन को प्रकाश में लाना चाहिए और व्यापक विचार-विमर्श द्वारा आधुनिक समस्याओं के समाधान में उनका उपयोग होना चाहिए।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो० बदरीनाथ शुक्ल ने अपने समापन भाषण में विद्वानों के निबन्ध और विचार-विमर्श के उच्च एवं गम्भीर स्तर पर सन्तोष व्यक्त किया तथा गोष्ठी के विषय की व्यापकता का निरूपण करते हुए बार-बार इस प्रकार की गोष्ठियों के आयोजन की आवश्यकता पर बल दिया। श्रमणविद्यासंकाय के अध्यक्ष प्रो० जगन्नाथ उपाध्याय के द्वारा विद्वानों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन के साथ गोष्ठी का विसर्जन हुआ।
परिसंवाद-२
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