Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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प्राचीन संस्कृत-साहित्य में मानव समता
२४१ ऊँच-नीच का कोई भेद-भाव न था। न्यायालय की तुला सबके लिये समान रूप से सुलभ थी।
शूद्र राज्य कार्य के संचालन में भी सहयोग करता था। वह राजा की मन्त्रिपरिषद् का भी सदस्य होता था, जैसा कि हमने पीछे के प्रकरण में देखा है।
शूद्रों को जहाँ एक ओर कतिपय बातों में उच्च वर्गों के समान अधिकार प्राप्त नहीं थे, वहीं उन्हें कुछ विशिष्ट सुविधाएँ भी सुलभ थीं। शूद्र, ब्राह्मणों एवं क्षत्रियों के कुछ विशिष्ट व्यवसायों को छोड़कर कोई भी व्यवसाय कर सकते थे। वह कुछ भी खा-पी सकते थे। निषिद्ध भोजन खा लेने पर भी उन्हें प्रायश्चित्त से शुद्ध होने की आवश्यकता न थी। वे विवाह के अतिरिक्त अन्य संस्कारों के विशाल जंजाल से भी मुक्त थे। उनके समक्ष गोत्र-प्रवर की झंझट भी न थी। शास्त्रविरुद्ध आचरण करने पर भी उन्हें प्रायश्चित करने की आवश्यकता न थी।
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परिसंवाद २
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