Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
View full book text
________________
व्यष्टि एवं समष्टि सम्बन्धी परिसंवाद-गोष्ठी का
संक्षिप्त विवरण विश्वविद्यालय अनुदान-आयोग के आर्थिक सहयोग से सम्पूर्णानन्द-संस्कृतविश्वविद्यालय के श्रमणविद्यासंकायान्तर्गत बौद्धदर्शन विभाग द्वारा दिनांक १० जनवरी, १९८० से १३ जनवरी १९८० तक बौद्ध दृष्टि से 'व्यक्ति, समाज, उनका सम्बन्ध और विकास' विषय पर एक चतुर्दिवसीय अखिल भारतीय परिसंवाद-गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में दिल्ली, लेह-लद्दाख, जयपुर, लखनऊ, कानपुर, चण्डीगढ़, राँची सोलन (हि० प्र०), नागपुर, शान्तिनिकेतन, पचमढ़ी, पूना, कुरुक्षेत्र, शिलांग (मेघालय), सागर, पटियाला, धारवाड़, वाल्टेयर, दरभंगा आदि दूर-दूर स्थानों से डॉ० एन० के० देवराज, डॉ. धर्मेन्द्र गोयल, डॉ० शान्तिभिक्षु शास्त्रो, डॉ० ए० के० सरन, डॉ० के० एन० शर्मा, डॉ० वैद्यनाथ सरस्वती, डॉ० नारायण शास्त्री द्रविड, डॉ० गोपिकामोहन भट्टाचार्य, डॉ० हर्षनारायण, डॉ० प्रतापचन्द्र, डॉ० रामचन्द्र पाण्डेय, डॉ० लालमणि जोशी, डॉ० महेश तिवारी, डॉ० सुनीति कुमार पाठक, डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, डॉ० केवलकृष्ण मित्तल, डॉ० सिद्धेश्वर भट्ट, पं० आनन्द झा आदि दर्शन एवं समाज शास्त्र विषय के भारत प्रसिद्ध लगभग ३५ विद्वान् अपने-अपने निबन्धों के साथ उपस्थित हुए। लगभग ५० की संख्या में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, काशी विद्यापीठ, गांधी संस्थान, अमेरिकन लाइब्रेरी, केन्द्रीय तिब्बती शिक्षा संस्थान आदि शिक्षा संस्थाओं के सम्बद्ध विषय के स्थानीय विद्वान् प्रतिदिन प्रतिगोष्ठी में सोत्साह सम्मिलित हुए। इन विद्वानों के निबन्ध और परस्पर के उच्चस्तरीय विचारविमर्श द्वारा न केवल उत्तम कोटि के विचार सामने आये, अपितु भारतीय दर्शन विशेषतः बौद्ध दर्शन की दृष्टि से व्यक्ति एवं समाज से सम्बद्ध वर्तमान समस्याओं के समाधान की सम्भावनाओं के कतिपय निश्चित संकेत दृष्टिगोचर हुए।
ज्ञात है कि पश्चिम के दार्शनिकों, समाज वैज्ञानिकों एवं राजनीतिशास्त्रियों ने व्यक्ति, समाज और उनके सम्बन्ध को प्रमुख विषय बनाकर प्रभूत चिन्तन किया है। चिन्तन के क्षेत्र में भारतीय मनीषियों का भी अग्रणी स्थान रहा है। यद्यपि इनके चिन्तन का प्रमुख क्षेत्र आध्यात्मिक रहा है, फिर भी उन्होंने समसामयिक युग में व्यक्ति, समाज और राज्य को अपने विशिष्ट जीवन दर्शन द्वारा प्रभावित किया है।
परिसंवाद-२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org