Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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बौद्ध दृष्टि से व्यक्ति का विकास ने समाज या समष्टि के लिए 'बहजन' शब्द का प्रयोग विनयपिटक में किया है, जिसकी पुष्टि 'महावग्ग' की निम्नलिखित पंक्ति से होती है-चरथ भिक्खवे चारिकं बहुजनहिताय बहुजनसुखाय लोकानुकम्पाय अत्तायहिताय सुखाय देवमनुस्सानं (म० व० पृ० २३)।
उपर्युक्त कथन से यह स्पष्ट है कि व्यष्टि अर्थात् पञ्चस्कन्धों के समुदाय को ही समाज कहा जाता है। यह सर्वविदित है कि जिस प्रकार के व्यक्ति होंगे, उसी प्रकार के समाज का गठन भी होगा। इस दृष्टि से यह अवश्य है कि व्यक्तियों का सर्वाङ्गीण विकास हो तथा वे शील सम्पन्न हों, जिससे कि एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो सके । इस सन्दर्भ में यह प्रश्न हो सकता है कि भगवान बुद्ध ने तो भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों के लिए ही उपदेश किया है न कि सामान्य जनों अर्थात् गृहस्थों के लिए। इससे यह तो सम्भव है कि सामान्य जनों अर्थात् गृहस्थों की एक स्वस्थ समष्टि का निर्माण हो सकता है। इससे तो केवल भिक्षु समुदाय हो लाभान्वित हो सकता है। लेकिन इस प्रकार की धारणा बिल्कुल निराधार एवं तथ्य हीन है । भगवान् बुद्ध ने भिक्षु गृहस्थ दोनों के लिए उपदेश किया है। इस प्रसंग में यह कहा जा सकता है कि उन्होंने गृही जीवन के समस्त अंगों पर विचार करते हुए उसके सर्वांगीण विकास की पृष्ठभूमि में ही सिगालोवादसुत्त का उपदेश दिया था। साथ ही यह तो उनके प्रथम उपदेश से भी प्रकट है, जब उन्होंने भिक्षुओं को बहुजनहिताय बहुजनसुखाय की भावना से अनुप्राणित कर लोक कल्याण में विचरण करने के लिए कहा था। ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान् बुद्ध ने अपना उपदेश करते समय भिक्षुओं को ही पुनः-पुनः सम्बोधित किया है और सम्भवतः उस सम्बोधन को ही देखकर ऐसी धारणा बन गयी है कि बुद्ध के उपदेश भिक्षओं के लिए ही हैं। आचार्य बुद्धघोष ने इसका निराकरण करते हुए कहा है कि परम कारुणिक तथागत के उपदेश को इस प्रकार सीमित करना उचित नहीं है। उपदेश क्रम में भिक्षुओं का सम्बोधन तो एक देशना की विधि मात्र है। जिस प्रकार राजा के आगमन से मंत्रीगण, अंगरक्षक, सेनापति आदि का आगमन स्वतः अभिप्रेत है, उसी प्रकार सम्बोधन के रूप में भिक्षु शब्द के प्रयोग के साथ उनकी चार प्रकार की परिषद् समाविष्ट है । उस शब्द से भिक्षु, भिक्षुणी, उपासक तथा उपासिका सबका कथन इष्ट समझना चाहिए (सु० वि० ३-६८) । इस प्रकार यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि परम कारुणिक तथागत की वाणी गृही तथा प्रबजित सबके हित के लिए है। __अब यह विचारणीय है कि भगवान् बुद्ध ने व्यष्टि तथा समष्टि के विकास के लिए कौन-कौन सी बातें कहीं हैं। इस क्रम में यह कहा जा सकता है कि बुद्ध के सामने
परिसंवाद-२
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