Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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समाज का विशेषकर मनुष्य मात्र का समष्टि में मधुमय वातावरण बनाने के . विधान किया है। इस दिशा में निम्नलिखित बातें विचारणीय हैं
भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाए सर्वाङ्गीण विकास इष्ट था । इसलिए उन्होंने लिए जो जो कार्य उपयुक्त हैं, उन सबका
मनुष्यों को मुख्यतः चार प्रकार के क्लेशयुक्त कर्म नहीं करने चाहिए । वे हैंप्राणातिपात, अदिन्नादान, कामेसुमिच्छाचार एवं मुसावाद - ( दी ० नि० ३ -१४४) । प्रथम तीन कायिक दुष्कर्म है तथा चौथा वाचिक दुष्कर्म है ।
प्राणातिपात जीवहिंसा, प्राणिबध आदि का ही नाम है । बौद्ध परम्परा के अनुसार आत्मा तथा आत्मीय कुछ नहीं है । जो मनुष्य है, वह पाँच स्कन्धों का संघातमात्र है । मनुष्य के व्यक्तित्व में पाँच स्कन्धों के अतिरिक्त और कोई ऐसा तत्त्व नहीं है जिसे आत्मा या आत्मीय कहा जा सकता है । तब बध किसका होता है ? जिसके द्वारा इन पाँच स्कन्धों का संधारण होता है, वह जीवितेन्द्रिय है, उसका उपच्छेद ही प्राणिबद्ध है । ऐसा जानते हुए किसी प्राणी को उसके जीवन से पृथक् कर देना प्राणिबध कहा जाता है ।
आचार्य बुद्धघोष ने इस पर प्रकाश डालते हुए प्रतिपादित किया है कि प्राणी शब्द व्यवहार में सत्त्व के लिए आया है । परमार्थरूप में वह जीवितेन्द्रिय का नाम है । इसलिए उस जीवितेन्द्रिय के उपच्छेद के लिए काय तथा वची द्वार से प्रवृत्त वधक - चेतना ही प्राणातिपात है । इस कर्म के होने में पाँच बातों का होना आवश्यक हैप्राणी हो, वह प्राणी है ऐसा ज्ञान हो, उसके प्रतिघात के लिए बाधक चित्त हो, वध के लिए यत्न हो तथा उसके फलस्वरूप मरण हो । इस प्रकार प्राण हिंसा के लिए जो बधकचेतना है, उसका परित्याग ही प्राणातिपात से विरति है, जिसको जीवन में उतारना समष्टि अर्थात् समाज के सम्यक् विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक है ।
अदिन्नादान दूसरा क्लेशयुक्त कर्म है, जिसका अर्थ होता है चोरी । जो वस्तु न दी गयी हो, उसको ग्रहण करना या दूसरे की वस्तु का हरण करना चोरी है । यह दुसरे की वस्तु को ग्रहण करने की चेतना है । उसको लेने के लिए यत्न हो, इन सबके साथ जो स्तेय चेतना उत्पन्न होती है, वह अदिन्नादान है । समाज से सम्यक् विकास के लिए यह आवश्यक है कि लोग चोरी से विरत रहें, जिससे समाज से सदा सद्भावना एवं मैत्री का वातावरण बना रहे ।
कामेसुमिच्छाचार तीसरा क्लेशयुक्त कर्म का नाम है । यह व्यभिचार का द्योतक है । गृही के लिए यह आवश्यक कि वह व्यभिचार से विरत रहे । वह अपनी
परिसंवाद - २
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