Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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विमलकीर्तिनिर्देशसूत्र के अनुसार व्यष्टि एवं समष्टि का सम्बन्ध एकत्व अथवा समत्व का ज्ञान उनको महामैत्री का साधन और साध्य बनकर रह गया था। जिस प्रकार व्यष्टि और समष्टि में अभेद है उसी प्रकार संसार और निर्वाण में तथा साधन और साध्य में भी भेदाभाव है।
___ संसार का महत्व स्वीकार कर लेने पर और संसार को ही बुद्धक्षेत्र समझ लेने पर महाकरुणा अथवा महामैत्री बोधि का साधन मात्र नही रह जाती है। महामैत्री हो बोधि है और इसका साक्षात्कार इसी संसार में सम्भव हो सकता है, अन्यत्र नहीं । रत्नमेघसूत्र (शिक्षासमुच्चय पृ० २० में उद्धृत) में भगवान् तथागत ने कहा है
"दानं हि बोधिसत्त्वस्य बोधिः ।" जो दानक्षेत्र है वही बुद्धक्षेत्र है । इसी को सूत्रों में करुणाभूमि, मैत्रीक्षेत्र, धर्मक्षेत्र एवं बोधिसत्त्वक्षेत्र कहा गया है । भगवान् बुद्ध का संघ अपरिमित और आकाश के समान सर्वत्र फैला हुआ है। सभी परिरक्षणीय और मोचनीय प्राणी इस संघ की अनन्त परिधि के अनन्य अंग हैं। अतएव यह प्राणिक्षेत्र ही अनुत्तर पुण्यक्षेत्र है। अनुत्तर सम्यक्संबोधि की दृष्टि इसी क्षेत्र में निरन्तर असंख्य बोधिसत्त्वों द्वारा की जाती है । बुद्ध आकाश में नहीं होते हैं । जिस प्रकार पुण्डरीक पङ्क के ढेर में पैदा होता है और पङ्क से निर्लिप्त रहते हुए अपनी जन्मभूमि को रमणीक
और सुगन्धित बनाता है, उसी प्रकार सम्यक्सम्बुद्ध का आविर्भाव भी संसार में होता है और संसार का अतिक्रमण करते हुए भी बुद्ध द्वारा बुद्धकार्य अर्थात् जनकल्याण का कार्य संसार में ही होता है। संक्षेप में यह कहना चाहिए कि बौद्ध परम्परा में संसार का असाधारण महत्त्व है। निवृत्तिपरक एवं त्याग प्रधान इस श्रमणधर्मदर्शन का आदि और अन्त संसार है। बुद्ध, धर्म एवं संघ, भिक्षु, भिक्षुणी, उपासक एवं उपासिका, अर्हत्, प्रत्येकबुद्ध एवं बोधिसत्त्व-इन सभी की उत्पत्ति संसार में होती है, संसार के कारण होती है। यदि संसार नहीं होता तो निर्वाण का आदर्श, निर्वाण का मार्ग, और निर्वाणमार्ग के द्रष्टा कैसे और क्यों होते ? जब तक संसार है तभी तक बुद्ध और उनके धर्म का महत्त्व है। संसार के न रहने पर बुद्ध और उनका धर्म दोनों ही निरर्थक हो जाते हैं। अतएव बौद्ध धर्म एवं संस्कृति में संसार का असाधारण महत्व है क्योंकि यही बोधिमण्ड है।
बोधिसत्त्वों की चर्या का क्षेत्र यह संसार वास्तव में बोधिसत्त्वों का क्षेत्र है, दान, शील, शान्ति, वीर्य, ध्यान, प्रज्ञा, उपायकौशल्य, प्रणिधि, बल एवं ज्ञान की पूर्णता इसी संसार में होती है । सम्यक्सम्बुद्धों की अचिन्तनीय महाबोधि के प्रकाश से
परिसंवाद-२
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