Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
View full book text
________________
बुद्ध का स्वनियन्त्रित अध्यात्मवाद : समष्टि व्यष्टि के सन्दर्भ में
११३
ठेकेदार बनना चाहते हैं तो हम उसका कदापि हित नहीं कर सकेंगे । राहुल जी ने कहा है - वैज्ञानिक भौतिकवाद के दार्शनिक विचारों से अनुप्राणित समाजवादी आन्दोलन, आरामकुर्सी पर बैठकर लेक्चर झाड़ने वाले वाक्पटु राजनीतिज्ञों की राजनीति नहीं है । इसमें पड़ने वालों को आग से खेलना पड़ता है, फिर यहाँ आचार हीन पुरुष की टांग कैसे ठहर सकती है । इनके सदाचार की नींव किसी ईश्वरीय विधान या अल्हाम पर नहीं, बल्कि बुद्ध के शब्दों में 'बहुजन हिताय बहुजन सुखाय' है (वैज्ञा० भौति० पृ० ८९ - २० ) । स्तालित कहता है- सिद्धान्त प्रयोग के बिना बाँझ है । इसीलिए तिलक ने गीता की प्रयोगात्मक व्याख्या की, जिसके कारण आत्मज्ञानियों को स्वतन्त्रता संग्राम में कूदना पड़ा था । आजकल का दार्शनिक सिर्फ घर में बैठकर जगत् की व्याख्या बदल रहा है । वह खुद को परिवर्तित नहीं कर रहै । इस प्रकार घर में बैठकर व्यक्ति यदि अपने में परिवर्तन न करता हुआ समाज में परिवत्तन की बात करता है या समाज को अपने से चिन्तित ज्ञान से परिवर्तित मान लेता है तो यह निरा अज्ञान है । बुद्ध ज्ञान के लिए तथा समाज के लिए आगे बढ़े थे, राजमहल छोड़े थे । उन्होंने मनुष्य को वशीभूत करने वाली प्रवृत्तियों का त्याग किया था । वह ईश्वर का खात्मा किये थे । वह नियतिवाद के विरोधी थे । वह कार्य - कारणवाद की नयी व्याख्या किये थे जिसमें उसका खोखलापन प्रगट हुआ था । दर्शन का कार्यकारणवाद प्रकृतिजगत में लागू होता है चित्त में जगत नहीं । क्योंकि प्रकृति का विधान नियत है वर्षात् में गेहूँ तथा चना की खेती नहीं हो सकती तथा गर्मी में धान नहीं पैदा हो सकता है क्योंकि प्रकृति के विधान नियत हैं, पर व्यक्ति इच्छा स्वातन्त्र्य से व्यवस्था बना कर पैदा भी कर सकता है । यद्यपि यह कार्य दुरूह है, इसीलिए स्वतन्त्र चैतन्य शाली व्यक्तित्व में प्राकृतिक कार्यकारण भाव नहीं चलता है । इसीलिए वह पुरानी व्यवस्थाएँ बदलता है, नयी व्यवस्था बनाता है । पर आजकल के भौतिकवादियों की अव्यवस्थित व्यवस्था को भी सलाम करने की जरूरत है जो न तो पुरानी व्यवस्था को चलाने देते हैं और न नयी व्यवस्था को पनपा पाते हैं । बुद्ध पुरानी व्यवस्थाएँ तोड़ने के पक्षपाती अवश्य थे तथा नियतिवाद, ईश्वरवाद, आत्मवाद के भंजक थे पर नयी व्यवस्था को अनियतवाद - अनात्मवाद और अनीश्वरवाद के आधार पर मानकर अध्यात्मवाद की प्रस्थापना किये थे । इसमें व्यक्ति
परिसंवाद- २
८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org